Modinagar सियासत के मैदान में बाजी कब किसके हाथ लगे कुछ पता नहीं रहता है। ऐसा ही टिकट को लेकर विभिन्न दलों में हुआ। टिकट न मिलने से सैकड़ों दावेदार हताश और निराश है, यह लाजिमी भी है। मगर, चैकाने वाली बात ये है कि जनता के प्रति उनका अनुराग, प्रेम अचानक कहां चला गया। जब तक टिकट नहीं मिला था, तो जनता की सेवा के लिए तत्पर रहते थे। सब कुछ जनता के लिए ही समर्पित कर दिया था। कसम खाया करते थे, कि उन्हें पार्टी मौका दे या न दे, मगर जनता की सेवा में कोई कमी नहीं छोड़ेंगे। तुम ही मेरे सब कुछ हो। मगर, जनता अब इन दावेदारों को ढूंढ रही हैं। ये दिखाई नहीं दे रहे हैं। कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा समेत कमोवेश सभी दलों में यही स्थिति है। हालांकि, जनता ऐसे भी दावेदारों को सलाम कर रही है, जिन्हें टिकट नहीं मिला मगर दूसरे ही दिन मैदान में आ डटे।
नेताजी भाषण देकर चुपके से निकल गए
चुनाव प्रचार प्रचंड पर है। सभी दलों ने पूरी ताकत झोंक दी है। नेताजी सुबह से लेकर देर रात तक जनता के बीच में संपर्क कर रहे हैं। ऐसे में कुछ जोशीले नेता भी अपना भाषण दे जा रहे हैं। कई बार तो ये भाषण इतने तीखे दे जाते हैं कि खुद प्रत्याशी भी असहज हो जाते हैं। ऐसे ही एक तेज तर्रार नेताजी शहर में भाषण दे गए। उन्होंने सत्ता दल पर जोरदार हमला किया। नेताजी भाषण देने के बाद दूसरे शहर के लिए निकल गए। सोचा मेरा काम तो हो गया। मगर, उनके भाषण के निहितार्थ निकालने वाले जुट गए। चर्चाएं तेज हो गई कि चुनाव के समय इतना तीखा भाषण नहीं देना चाहिए। इससे गलत असर पड़ेगा। अब प्रत्याशी सभी को समझाते फिर रहे हैं कि उन्हें हमने तो बुलाया ही नहीं था। अब वो कैसे भाषण दे गए हमें इस बारे में कुछ पता भी नहीं हैघ्
फिर इनके पीछे तुम्हें दौड़ना पड़ेगा
इन दिनों नेताजी की विनम्रता देखते ही बनती है। फिलहाल, उनके इतना सहज, सरल और सज्जन कोई नहीं होगा। कहीं भी जाते हैं माताजी और बाबूजी कहते हुए पैर पकड़ लेते हैं। जनता जिधर घूमा दे, उधर वो चल देते हैं। जैसा जो कह रहा है, वैसा नेताजी कर रहे हैं। एकदम गऊ जैसे नजर आ रहे हैं। जनता भी गलियों और मौहल्लों में दौड़ा रही है। उन्हें खूब आनंद आ रहा है। गांवों में उत्सव सा माहौल है। ऐसे ही मोदीनगर विधानसभा में नेताजी संपर्क कर रहे थे। गांव के लोग अड़ गए कि मेरे दरवाजे से होकर निकले। नेताजी ने हाथ जोड़ लिया, बोलें अभी-अभी वहीं से होकर आया हूंॅ। हमें दूसरे गांव भी संपर्क में जाना है। मगर युवा नहीं माने। अंत में बुझे मन से नेताजी को वापस लौटना पड़ा। गांव के एक बुजुर्ग ने कहा कि अभी जैसा चाहो करा लो, फिर इनके पीछे तुम्हें दौड़ना पड़ेगा।
तो नैया पार हो जाती…
जीवन में किसी ने ऐसा चुनाव नहीं देखा होगा। रैलियों में भीड़ जुटाने की होड़ नहीं, स्टार प्रचारकों को बुलाने की कोई बेताबी नहीं। कभी सपने में भी विचार नहीं आया हो कि विशाल रैली भी मात्र एक हजार की संख्या में निपट जाएगी। ऐसे में सबसे सुकून प्रत्याशियों को मिल रहा है। भीड़ जुटाने की कोई प्रतिस्पर्धा नहीं। बसें लगाने की कोई जरूरत नहीं। चैराहे से लेकर चैपालों में इसकी खूब चर्चा हो रही है। गांव में तो कुछ लोग यह भी कहने लगे कि ऐसे समय में यदि टिकट मिल जाता तो नैया पार हो जाती, कम से कम रैलियों में भीड़ जुटाने की होड़ तो नहीं है। सब कुछ बहुत सस्ते में निपट जाता। मगर, कई नेताओं की हवाईयां भी उड़ी हुई हैं। नेताजी को यह टोह नहीं मिल रही है कि उनकी स्थिति कैसी है, क्योंकि रैलियों और सभाओं के माध्यम से अंदाजा लग जाया करता था, कि वो कितने पानी में हैं।