आज बाघ दिवस के मौके पर जहां इनकी बढ़ती संख्या मन को तसल्ली दे रही है, वहीं लगातार बढ़ते मौत और शिकार के मामले चिंता बढ़ाते हैं। संख्या के लिहाज से देखा जाए तो प्रकृति ने एक मौका दिया है, कार्बेट पार्क और अमानगढ़ वन रेंज में बाघों की संख्या 250 तक पहुंच गई है। बाघों को लेकर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पहलुओं पर चर्चा करने और संरक्षण को कागजों से धरातल पर उतारने की जरूरत है। 48 साल पहले कार्बेट नेशनल पार्क में बाघ परियोजना की शुरुआत की गई थी। बाघों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण की गाइडलाइन मील का पत्थर साबित हुई है। 1972 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के बनने के बाद कार्बेट टाइगर रिजर्व में एक अप्रैल 1973 को बाघ परियोजना की शुरुआत की गई थी।
सबसे पहले नेशनल पार्क के ढिकाला जोन में इसको लागू किया गया था। उस समय पूरे देश में मात्र 268 बाघ ही मौजूद थे। वर्तमान में अकेले कार्बेट टाइगर रिजर्व में 250 बाघ मौजूद होने का दावा वन विभाग के अधिकारी करते हैं। बाघों के संरक्षण के लिए चलाई जा रही बाघ परियोजना को गति राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण से मिले दिशा-निर्देशों से मिली। कार्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों के संरक्षण के लिए हुए काम के कारण यहां समृद्ध वन एवं उनमें मौजूद शाकाहारी जीव बाघों के अस्तित्व के लिए खास हैं। कार्बेट टाइगर रिजर्व के बीच से होकर गुजरती रामगंगा नदी वन्यजीवों के लिए लाइफ लाइन है। बाघ को कालागढ़ से ढिकाला तक पर्याप्त जल इस नदी से मिल जाता है। रामगंगा नदी की घाटी व शिवालिक की पहाड़ियों में बाघों का विचरण आम है। यहां कालागढ़ से रामगंगा बाघ व कालागढ़ से सैंडिल बाघ व नई कॉलोनी, केंद्रीय कॉलोनी तक बाघों का विचरण होता है। जिम कार्बेट टाइगर रिजर्व के वार्डन रमाकांत तिवारी का कहना है कि बाघ परियोजना से बाघों के संरक्षण को गति मिली है। यहां बाघों का संरक्षण बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। अब यहां 250 से अधिक बाघ मौजूद हैं। सुरक्षा व पर्यावरण उनके अनुकूल है। रायल बंगाल टाइगर को यहां का प्राकृतावास भा गया है। सुरक्षा के सभी इंतजाम कालागढ़ के उपखंड अधिकारी कुंदन सिंह खाती का कहना है कि जिम कार्बेट में सबसे अधिक बाघ कालागढ़ के जंगलों में हैं। इनकी सुरक्षा के लिए गश्ती दलों के अलावा उच्च स्तरीय तकनीक का भी सहारा लिया जा रहा है। वन ई-सर्विलांस पर हैं। कैमरों से वनों के रास्तों आदि पर निगाह रखी जा रही है। वहीं, वन्यजीव प्रेमी वीरेंद्र कुमार अग्रवाल, दीपक कुमार, सैदबिन सैफी आदि का कहना है कि बाघों के विचरण में सिकृड़ते प्राकृतावास समस्या बन सकते हैं। वनक्षेत्रों का संरक्षण आज बड़ी आवश्यकता है।