मोदीनगर। रसोई गैस की बढ़ती कीमत व अनुदान राशि कम होने के कारण गरीब परिवारों ने गैस पर खाना बंद कर दिया। उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों के घर फिर से चूल्हे का धुआं उठाता दिखाई देने लगा है। वहां उपले व लकड़ी जलाकर खाना बनाया जाने लगा है। 25 फीसद उज्ज्वला कनेक्शन धारकों ने एक साल से गैस तक नहीं भरवाई है।
केंद्र सरकार ने अप्रैल 2016 से देश भर में उज्ज्वला योजना की शुरुआत की थी। इसमें गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों को निःशुल्क कनेक्शन दिया जाता है। कनेक्शन लेते समय रसोई गैस की कीमत 436 रुपये थी। इससे अधिक कीमत बढ़ने पर शेष राशि अनुदान के रूप में सरकार उपभोक्ता के खाते में भेज देती थी।
जून 2020 के पहले अनुदान राशि के रूप में उपभोक्ताओं को ढाई सौ रुपये से तीन सौ रुपये तक मिल जाता था। उसके बाद सरकार ने अनुदान राशि 19.90 रुपये तय कर दिया है।
इसके बाद गैस की कीमत लगातार बढ़ रही हैं। वर्तमान में गैस की कीमत 906 रुपये प्रति सिलेंडर पर पहुंच चुकी हैं। उज्ज्वला योजना के तहत उपभोक्ताओं द्वारा गैस नहीं उठाने के बाद तेल कपंनियों ने सर्वे कराया है। जिसमें 30 फीसद उज्ज्वला कनेक्शन प्रत्येक साल 10 से 12 सिलेंडर गैस लेते हैं। 25 फीसद उपभोक्ता ऐसे हैं, जिन्होंने एक साल में एक भी गैस सिलेंडर नहीं लिया है। 45 फीसद उपभोक्ता साल में तीन से कम गैस सिलेंडर लेते हैं। जबकि, कंपनी ने प्रत्येक उपभोक्ता को प्रत्येक साल अनुदान पर 12 सिलेंडर देने की व्यवस्था कर रखी है। सर्वे में पाया कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले अधिकांश के पास जानवर है, उसके गोबर से उपले बनाते हैं। अधिकांश परिवार खेतों में काम करते हैं। जिससे खेतों से बीनकर लाई गईं लकड़ियां, घास और फसलों के अवशेष आदि मिल जाते हैं और इन्हें जलाकर खाना बनाते हैं। कंपनी की टीम इन लोगों को जागरूक करने का प्रयास कर रही है। इंडियन आयल कारपोरेशन के स्थानीय अधिकारी का कहना है कि उज्ज्वला कनेक्शनधारक कीमत बढ़ने और अनुदान कम मिलने के कारण रसोई गैस का प्रयोग कम कर रहे है। कई उपभोक्ता तो गैस लेते तक नहीं हैं।
गांव विजय नगर, रोरी की निवासी महिला रामवती का कहना है कि परिवार से सदस्य मजदूरी कर परिवार का गुजरा करते हैं, खेतीबाड़ी नहीं हैं। लगातार गैस की कीमत बढ़ते जा रहा है। एक साथ नौ सौ रुपये देकर गैस खरीद नहीं पाते हैं। ऐसे हालत में उपले या जंगल से मिलने वाली लकड़ी व घास आदि जलाकर खाना तैयार करते हैं। खाली सिलेंडर को हटाकर रखा दिया है। कैलाश देवी ने बताया कि जब रुपये हो जाते हैं, तब गैस खरीद लेते हैं। रुपये नहीं होने पर उपले आदि से खाना बनाते हैं। पहले अनुदान राशि अधिक मिलाया करती थी, तो उधार लेकर गैस भरवा लेते थे। खाता से अनुदान राशि निकाल कर उधार चुका देते थे। राजवती का कहना है कि मजदूरी व जानवर पालकर परिवार का भरण पोषण करते हैं। गोबर से उपले तैयार कर लेते हैं, घर में उपले होने से गैस के जगह खाना बनाते हैं। गैस की कीमत बढ़ने से सिलेंडर दोबारा नहीं भरवाया है।