भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेतृत्व ने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव के घर में सेंध लगाकर राजनीतिक तोड़फोड़ का बदला तो लिया है, लेकिन इसका चुनाव पर बहुत ज्यादा असर पड़ेगा इसकी संभावना कम है। हालांकि प्रचार अभियान में माहौल बनाने के लिए अपर्णा यादव के भाजपा में शामिल होने को जमकर प्रचारित जरूर किया जायेगा। अपर्णा यादव को भाजपा में शामिल कराने के लिए पार्टी ने लखनऊ के बजाय दिल्ली को चुना। इससे सामाजिक समीकरणों से ज्यादा अखिलेश यादव की किरकिरी करना रहा। पार्टी ने अपर्णा यादव को साथ लाने के साथ पिछड़ा वर्ग के अपने नेताओं के सपा में जाने को भी संतुलित करने की कोशिश की है। यही वजह है कि अपर्णा यादव को शामिल कराने के लिए उसने अपने प्रदेश के दो प्रमुख पिछड़ा वर्ग नेताओं प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को चुना। दोनों नेताओं ने अपर्णा यादव को सदस्यता दिलाई। भाजपा इससे पिछड़ों को संदेश देना चाहती है कि वह उसके साथ हैं। मुलायम सिंह यादव के छोटे बेटे प्रतीक यादव की पत्नी अपर्णा यादव का झुकाव काफी लंबे समय से योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर रहा है। अपर्णा सपा में पारिवारिक राजनीति में भी बहुत ज्यादा सफल नहीं हो पा रही थी, ऐसे में भाजपा में आना उनके राजनीतिक भविष्य की एक बड़ी सोच तो है ही भाजपा को भी इसका लाभ है।
भाजपा का यह दांव जमीन पर कितना काम करेगा यह नहीं कहा जा सकता है। हालांकि राजनीतिक हलकों में इसे एक बड़े प्रतीक के रूप में माना जा रहा है जो भाजपा सपा के खिलाफ इस्तेमाल करेगी। अपर्णा यादव को चुनाव लड़ाने का मामला भी उलझा हुआ है। वह पिछला चुनाव सपा से लखनऊ कैंट से विधानसभा चुनाव लड़ी थी जहां पर उन्हें भाजपा से हार का सामना करना पड़ा था। इस सीट से भाजपा नेता सांसद रीता बहुगुणा जोशी के बेटे की दावेदारी है। अपने बेटे के लिए जोशी ने लोकसभा सदस्यता छोड़ने की बात तक कही है।

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