मोदीनगर। शहर में बंदरों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। खूंखार बंदरों का झुंड घरों में कूदकर बच्चों व बड़ों को निशाना बना रहे हैं। स्थिति यह है कि बंदर एक ही आदमी को कई-कई बार काटकर घायल कर चुके हैं, ओर  करीब आधा दर्जन से अधिक मौते भी बंदरों के हमले से हो चुकी है। बंदरों के आतंक से दुःखी लोगों ने अब वोट मांगने के लिए आने वाले प्रत्याशियों का बहिष्कार करने का मन बना लिया है। कई वर्ष की इस समस्या का दुखड़ा इस बार विधानसभा चुनाव में वोट मांगने वाले उम्मीदवारों के सामने यक्ष प्रश्न साबित होगा।
विधानसभा चुनाव में वोट मांगने के लिए विभिन्न कालोनियों में पहुंचने वाले उम्मीदवारों का लोग उनका बंदरों से सामना कराने का मन बनाए बैठे हैं। नगर पालिका सहित प्रशासनिक अधिकारियों से त्रस्त बैठे लोगों का गुस्सा फूट रहा है। इसका कारण है कि शहर की हरमुखपुरी, सुचेतापुरी, गोविन्दपुरी, संतपुरा आदि काॅलोनियों में कई वर्षाें से बंदरों का आतंक अपनी चरम सीमा पर है। यंहा के अधिकतर बंदर खूंखार हो गए हैं, जो अकेले बैठे बच्चों, महिलाओं और व्यक्तियों को घेरकर घायल कर रहे हैं। विभिन काॅलोनियों में सैकड़ों बंदरों के काटने व हमले से जख्मी हो चुके हैं ओर करीब आधा दर्जन से अधिक की मौत भी गतवर्षों में हो चुकी है।
आवारा कुत्तो से भी उठानी पड़ रही परेशानी
नगर क्षेत्र में आवारा कुत्तों का समूह भी बढ़ रहा है। रात के समय ये कुत्ते लोगों के पीछे भागते हैं। कई बार लोगों को अपने दांत मारकर अस्पताल में पहुंचने को मजबूर कर रहे हैं। शहर की किदवईनगर, बिसोखर, विजयनगर, सुचेतापुरी, हरमुखपुरी, संतपुरा, गुरूनानकपुरा, आनंदपुरी, ब्रह्मपुरी सहित अन्य क्षेत्रों में कुत्ते रात को आफत मचाकर लोगों का नुकसान करते हैं। लोगों के घरों के बाहर गंदगी फैलाकर सड़कों को गंदा करते हैं। पालिका इन कुत्तों की नसबंदी कराने के लिए कोई कदम तक नहीं उठा रही है।
हरीदत्त काण्डपाल कहते है कि काॅलोनी में दर्जनों लोगों पर बंदर हमला कर जख्मी कर चुके है। लोग इस समस्या का निदान सबसे पहले चाहते हैं। इस बार उसी उम्मीदवार को वोट देंगे जो हमारी इस समस्या को दूर करेगा।
अनीता रानी कहती है कि मैं घर में बैठकर खाना खा रही था। उसी समय बंदर ने मेरी तरफ झपटकर कमर पर काट लिया। तब से मुझे घर में भी डंडा लेकर बैठना पड़ता है।
सुमन देवी का कहना है कि मेरे घर में प्रतिदिन बंदर आते हैं। यदि हम में से कोई भी उनके सामने आता है तो वह काट लेते हैं। इस कारण कमरों से बाहर निकलने के लिए अपने बड़ों का इंतजार करना पड़ता है। मेरे दादा तक को बंदर काट चुके हैं।
लोग कहतेहै कि बंदरों की समस्याओं को लेकर  शिकायत करने पर भी कोई टीम बंदरों को पकड़ने के लिए नहीं आती है। जनप्रतिनिधि भी नहीं सुनते हैं। ऐसे में किसी को वोट देने का भी मन नहीं करता है।
कई सामाजिक सगंठनों ने किया था आंदोलन
मेनका गांधी के हस्तक्षेप के बाद बंद हुआ बंदर पकडों  अभियान
गतवर्ष सामाजिक संस्था रानी लक्ष्मीबाई  फाॅउंडेशन की अध्यक्षा श्रीमती कुसुम सोनी व टीम शक्ति अन्याय निवारण ट्रस्ट की राष्ट्रीय अध्यक्षा डा0ॅ दीपा त्यागी ने बंदरों को पकड़वायें जाने की मांगको लेकर बड़ा आंदोलन किया था। इतना ही नही कुसुम सोनी ने नगर पालिका कार्यालय गेट पर अनशन भी शुरू किया था, ओर डाॅ0 दीपा त्यागी ने जिला मुख्यालय पंहुचकर प्रदर्शन के दौरान बंदरों से निजात दिलायें जाने की पुरजोर वकालत की थी। जिसके परिणाम स्वरूप अनुमति उपरान्त पालिका की देखरेख में बंदरों को पकड़ने के लिए अभियान भी चलाया गया था। आरोप है कि करीब चार दिन अभियान चलायें जाने के दौरान की पशु प्रेमी व भाजपा की सांसद मेनका  गांधी ने  हस्तक्षेप कर इस अभियान को बंद कराया दिया था। जिसका खामियाजा आज तक शहर के लोगों को भुगतना पड़ रहा है।

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