ईद उल अजहा ( बकरीद ) पर सिर्फ जानवरों की जान लेना कुर्बानी नहीं है, बल्कि अल्लाह के हुकुम को मानकर जज्बा दिखाना कुर्बानी है। शाही जामा मस्जिद में शहरकाजी प्रोफेसर जैनुस साजिद्दीन सिद्दीकी ने नमाज अदा करने आए अकीदतमंदों कुर्बानी देने का मकसद बताया। कहा महंगे जानवर खरीदकर उनकी नुमाईश करना एकदम गलत है। बुद्धवार को बकरीद के त्योहार पर शहर की मस्जिदों में नमाज अदा की गई। शाही ईदगाह में चंद लोगों ने नमाज अदा कर सालों पुरानी परंपरा को कायम रखा। शाही ईदगाह व शाहीजामा मस्जिद में साढ़े 7 बजे ईद की नमाज अदा की गई। शाही ईदगाह में कारी शफीकुर्रहमान कासमी के बेटे कारी हस्सान ने नमाज अदा कराई, जबकि शाहीजामा मस्जिद में शहरकाजी प्रोफेसर जैनुस साजिद्दीन सिद्दीकी ने नमाज पढ़ाई।

नमाज से पहले तकरीर करते हुए शहरकाजी ने कुर्बानी की शुरुआत के बारे बताया। इंसानियत को बचाने के लिए जानवर की कुर्बानी बताया करीब चार हजार साल पहले अल्लाह के हुकुम को मानते हुए हजरत इब्राहिम ( अ. स.) अपने मासूम बेटे इस्माईल को कुर्बानी के लिए लेकर चले गए। अल्लाह ने अपनी मुहब्बत के लिए सिर्फ उनको आजमाने के लिए ऐसा किया। लेकिन अल्लाह ने भी इंसानियत को बचाते हुए बेटे की जगह दुम्बा ( बकरे जैसा दिखने वाला जानवर ) हजरत इब्राहीम ( अ. स.) के सामने पेश कर दिया। शहरकाजी ने कहा अल्लाह को भी इंसानियत पसन्द है, वरना आज अपने बेटों की कुर्बानी देनी पड़ती। इस्लाम हमेशा इंसानियत को बचाने और सही रास्ते पर चलने का हुकुम देता है। नमाज के बाद शहरकाजी ने देश और दुनिया में कोरोना से राहत व अमनो-अमान के लिए दुआ कराई।

 

 

 

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