भारतीय हॉकी टीम के टोक्यो में पदक जीतने की इबारत पहली बार नहीं लिखी गई है। 57 साल पहले इसी टोक्यो शहर में चरणजीत सिंह की टीम ने पाकिस्तान को हराकर स्वर्ण पदक जीता था। चरणजीत समेत इस टीम के छह सदस्य अभी भी जीवित हैं। इनमें दिग्गज गुरबख्श सिंह और हरबिंदर सिंह का नाम भी शामिल है। हरबिंदर का तो टोक्यो में तिरंगा लहराने वाली वर्तमान और 57 साल पुरानी दोनों टीमों से नाता है। जिस टीम ने टोक्यो में कांस्य पदक जीता है, यह टीम उन्हीं की अगुवाई में चुनी गई थी। वह हॉकी इंडिया के मुख्य चयनकर्ता हैं। गुरबख्श और हरबिंदर खुलासा करते हैं कि जितनी खुशी उन्हें 57 साल पहले स्वर्ण जीतकर हुई थी उतनी ही खुशी इस पदक के जीतने पर है।

दोनों के मुताबिक उस वक्त चुनौती यह थी कि किसी तरह 1960 के रोम ओलंपिक में पाकिस्तान के हाथ से निकले स्वर्ण पदक को वापस पाना है। वहां उन्होंने पाकिस्तान से स्वर्ण छीना था और यहां टोक्यो में मनप्रीत की टीम ने भारतीय हॉकी को नया जीवन दिया। गुरबख्श को याद है कि 1964 ओलंपिक का फाइनल भारतीय टीम की प्रतिष्ठा की बात बन गया था। मोहिंदर लाल के पेनाल्टी स्ट्रोक पर भारत ने पाक को जैसे ही 1-0 से हराया। स्टेडियम में मौजूद मिल्खा सिंह, जीएस रंधावा, अश्वनी कुमार, राजा कर्णी सिंह सभी मैदान में घुस आए और टीम के सदस्यों को गले लगाना शुरू कर दिया। हरबिंदर कहते हैं कि रोम में पाकिस्तान से मिली फाइनल में हार काफी चुभने वाली थी। भारतीय टीम किसी भी कीमत पर स्वर्ण पदक वापस पाना चाहती थी और उन्होंने ऐसा करके भी दिखाया।

 

 

 

 

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