घातक कोरोना वायरस के प्रकोप को लेकर पूरे विश्व में चिंता के बीच एक अच्छी खबर आई है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल सायेंस (आईएमएस) में हुए रिसर्च से पता चला है कि गंगाजल में खासी तादात में मौजूद बैक्टीरियोफेज (जीवाणुभोजी) कोरोना को परास्त करने की क्षमता रखते हैं। गंगाजल से कोरोना के इलाज के ह्यूमन ट्रायल की तैयारी के बीच इस रिसर्च को इंटरनेशनल जर्नल ऑफ माइक्रोबायोलॉजी के आगामी अंक में जगह मिलने का स्वीकृति पत्र मिला है।
भारत समेत तमाम देशों में इन दिनों कोरोना की वैक्सीन तैयार करने और कारगर इलाज की दवा खोजने पर तेजी से काम चल रहा है। इस क्रम में बीएचयू के डॉक्टर भी कोरोना पर ‘वायरोफेज’ नाम से रिसर्च में जुटे हैं। न्यूरोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ. रामेश्वर चौरसिया व प्रख्यात न्यूरोलॉजिस्ट प्रो. वी.एन.मिश्रा की अगुवाई वाली टीम ने प्रारंभिक सर्वे में पाया है कि नियमित गंगा स्नान और गंगाजल का किसी न किसी रूप में सेवन करने वालों पर कोरोना संक्रमण का तनिक भी असर नहीं है।
गंगा किनारे के 42 जिलों में कोरोना का संक्रमण कम
टीम का दावा है कि गंगा किनारे रहने वाले, लेकिन स्नान करने वाले 90 फीसदी लोग भी कोरोना संक्रमण से बचे हुए हैं। इसी तरह गंगा किनारे के 42 जिलों में कोरोना का संक्रमण बाकी शहरों की तुलना में 50 फीसदी से कम और संक्रमण के बाद जल्दी ठीक होने वालों की संख्या ज्यादा है।
एथिकल कमिटी को भेजा
‘वायरोफेज’ रिसर्च टीम के लीडर प्रो. वी.एन. मिश्र ने बताया कि स्टडी के साथ ही गोमुख से लेकर गंगा सागर तक सौ स्थानों पर सैंपलिंग कर गंगा के पानी में ए-बायोटिकफेज (ऐसे बैक्टीरियोफेजी जिनकी खोज अब तक किसी बीमारी के इलाज के नहीं हुई है) ज्यादा पाए जाने वाले स्थान को चिन्हित किया गया है। इसके अलावा कोरोना मरीजों की फेज थेरेपी के लिए गंगाजल का नेजल स्प्रे भी तैयार कराया गया है।
गंगनानी के जल से ट्रायल
गंगोत्री से करीब 35 किलोमीटर नीचे गंगनानी में मिलने वाले गंगाजल का ह्यूमन ट्रायल में प्रयोग किया जाएगा। प्लान के मुताबिक सहमति के आधार पर 250 लोगों पर ट्रायल किया जाएगा। इसमें से आधे लोगों को दवा से छेड़छाड़ किए बिना एक पखवारे तक नाक में डालने को गंगनानी से लाया गया गंगाजल और बाकी को प्लेन डिस्टिल वॉटर दिया जाएगा। इसके बाद परिणाम का अध्ययन कर रिपोर्ट इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) को भेजी जाएगी।