Modinagar शहर बंदरों से त्रस्त है। यहां हर गली, नुक्कड़ पर बंदरों के झुंड बैठे मिलते हैं। जलभराव, टूटी सड़कों से अधिक यहां बंदर लोगों के लिए खतरा बन चुके हैं। इनको पकड़ कर जंगल में छोड़ने के अब तक सारे दावे उस समय हवा हवाई साबित हो गये जब पीपुल्स फॉर एनिमल की राष्ट्रीय अध्यक्ष व भाजपा नेत्री मेनका गांधी ने गतमाह पूर्व बंदरों पकडों अभियान की शुरू होते ही अण्धिकारियों को जमकर खरीखोटी सुनाकर बंद करा दिया था।
छत से लेकर बालकनी और गलियों तक में इनका कब्जा होता है। इनके खौफ से लोगों को बालकनी में लोहे की जाली लगवानी पड़ती है। हालांकि इसमें सारा दोष बंदरों का ही नहीं है। जंगल खत्म हो गए। बाग बगीचों की जगह कंक्रीट के जंगल खड़े हो गए। बंदर जाएं कहां, इसलिए इन्होंने शहरी आबादी क्षेत्र में ही अपना ठिकाना बना लिया है।
बंदरों को पकड़ने के लिए गतवर्ष रानी लक्ष्मीबाई फाउंडेशन की अध्यक्ष कुसुम सोनी ने विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से बंदर पकड़ने के लिए आंदोलन किया था ओर पालिका से लेकर तहसील पर धरना प्रदर्शन कर बंदरों को आबादी से बाहर भिजवायें जाने की व्यवस्था की मांग पुरजोर तरीके से उठाई थी, जिसका असर भी दिखाई दिया ओर पालिका के अथक प्रयास के बाद वन विभाग से अनुमति मिलने पर पालिका ने प्रक्रिया निर्धारित कर अभियान की शुरूआत भी करा दी थी। अधिकारियों ने मेनका गांधी के मौखिक आदेश के बाद इस अभियान को बंद कर दिया। जिससके बाद से बंदरों का आतंक लोगों के लिए जी का जंजाल बना है। बदरो के हमले से अब तक करीब एक दर्जन लोगों की मौत हो चुकी है ओर सैकडों महिला, पुरूष, बच्चें व बुजुर्ग घायल हो चुके है। बंदरों से मुक्ति दिलाने के लिए जनप्रतिनिधियों से भी कई बार गुहार लगाई जा चुकी है मगर इस काम के लिए न बजट है और न ही इच्छा शक्ति।
झुंड में रहते हैं बंदर
शहर में बंदरों ने अपने ठिकाने बना रखे हैं। हर गली व बाजार में बंदरों के झुंड रहते हैं। इनमें सबसे अधिक बंदर गोविन्दपुरी, सुचेतापुरी, हरमुखपुरी, डबल स्टोरी, ऋषभ बिहार, सतीश पार्क, मोहन पार्क, देवेन्द्रपुरी, कृष्णा नगर व तेल मिल गेट आादि क्षेत्र में हैं

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