Bhopal, वरिष्ठ पत्रकार और फिल्म समीक्षक जयप्रकाश चौकसे नहीं रहे। वे पिछले काफी वक्त से कैंसर से पीड़ित थे। उन्होंने बुधवार सुबह 83 साल की उम्र में इंदौर में अंतिम सांस ली। उन्हें सिनेमा का एनसाइक्लोपीडिया माना जाता था। बीते 26 सालों से वे ‘परदे के पीछे’ कॉलम लिख रहे थे। उन्होंने उपन्यास ‘दराबा’, ‘महात्मा गांधी और सिनेमा’ और ‘ताज बेकरारी का बयान’ भी लिखे। ‘उमाशंकर की कहानी’, ‘मनुष्य का मस्तिष्क और उसकी अनुकृति कैमरा’ और ‘कुरुक्षेत्र की कराह’ उनकी कहानियां हैं। चौकसे जी की समीक्षाएं आम फिल्मी समीक्षाओं की भाषा और गॉसिपबाजी से हटकर होती थी। उनमें दायित्वबोध भी था और इसीलिए वे पसंद भी किए जाते थे। 25 फरवरी के एडिशन के लिए उन्होंने अपना कॉलम ‘परदे के पीछे’ आखिरी बार लिखा था। इसका टाइटल था- ‘यह विदा है, अलविदा नहीं, कभी विचार की बिजली कौंधी तो फिर रुबरु हो सकता हूं, लेकिन संभावनाएं शून्य हैं…