<p>आपके शहर या आपको जहां जाना है, वहां पर बारिश होगी, ओले गिरेंगे, ठंडी होगी या तापमान बढ़ेगा ये सब खबर मौसम विभाग आपको देता है. क्‍योंकि आने वाले दिनों के मौसम को लेकर मौसम विभाग पहले ही भविष्‍यवाणी कर देता है. अधिकांश लोग मौसम को ध्यान में रखते हुए अपने प्रोग्राम को तय करते हैं. लेकिन सवाल ये है कि आखिर मौसम विभाग को ये जानकारी कैसे होती है. आखिर इसके पीछे कौन सी तकनीक काम करती है. </p>
<p><strong>मौसम विभाग</strong></p>
<p>बता दें कि मौसम के पूर्वानुमान के लिए कई फैक्‍टर्स जिम्‍मेदार होते हैं. इसके लिए तमाम यंत्रों की सहायता से वातावरण और जमीन की सतह का तापमान, नमी, हवा की गति और दिशा, ओस, बादलों की स्थिति आदि को देखा जाता है. इसके लिए कई तरह की मशीनों और उपकरणों का इस्‍तेमाल किया जाता है. जैसे बारिश के लिए वर्षामापी यंत्र, हवा की गति मापने के लिए एनीमोमीटर, हवा की दिशा के लिए विंडवेन, वाष्पीकरण की दर को मापने के लिए पेन-इवेपोरीमीटर, सनसाइन रिकॉर्डर, ओस के लिए ड्यूगेज, जमीन का तापमान नापने के लिए थर्मामीटर आदि का प्रयोग किया जाता है. </p>
<p>इसके अलावा मौसम का डेटा जुटाने में हाई-स्पीड कंप्यूटर, मौसम संबंधी उपग्रह, एयर बैलून और मौसम रडार भी अहम भूमिका निभाते हैं. इसके बाद जुटाए गए डेटा का अध्‍ययन किया जाता है और वर्तमान डेटा और मौसम के पिछले डेटा को भी देखा जाता है. इसके बाद मौसम की भविष्यवाणी की जाती है. </p>
<p><strong>सेटेलाइट</strong></p>
<p>जानकारी के मुताबिक मौसम विभाग के पास कई तरह के सेटेलाइट मौजूद होते हैं. जो बादलों की तस्‍वीर भेजते रहते हैं. इससे मौसम विभाग के लोगों को ये अनुमान लगता रहता है कि कहां बादल हैं और कहां नहीं हैं. हालांकि बादलों को देखकर केवल इतना अंदाजा लगता है कि किस जगह धूप निकलेगी और किस जगह बादल छाए रहने का अनुमान है. वहीं बारिश का अनुमान लगाने के ये देखना पड़ता है कि बादलों में कितना पानी है. इसके लिए धरती से आकाश की ओर रडार छोड़ी जाती है. रडार के जरिए भेजी गई तरंगें बादलों से टकरा कर वापस आती हैं और उसके बाद उनका अध्‍ययन किया जाता है. इसके बाद मौसम विभाग ये भविष्‍यवाणी करता है कि कहां बारिश हो सकती है.</p>
<p><strong>बारिश की मात्रा</strong></p>
<p>आपके अक्सर सुना होगा कि इस शहर में इतना एमएम बारिश हुई है. दरअसल मौसम विभाग के पास एक बाल्‍टीनुमा कीप होती है, जो ऐसी जगह पर रखी जाती है, जहां न कोई बड़ी इमारत हो और न ही कोई पेड़ होता है. यानी जब बारिश का पानी गिरे तो वो कीप अच्‍छी तरह से भर सके. इस कीप में MM में नंबर लिखे होते हैं. बता दें कि बारिश रुकने के बाद इन नंबर्स को देखा जाता है, इसके आधार पर मौसम विभाग ये जारी करता है कि किस जगह कितने MM बारिश हुई है.</p>
<p><strong>मौसम की भविष्यवाणी</strong></p>
<p>मौसम विभाग 4 तरह की भविष्‍यवाणियां करता है. पहला तात्‍कालिक जो अगले 24 घंटे के लिए होता है, दूसरा अल्‍प अवधि जो 1 से 3 दिनों के लिए होता है, तीसरा मध्‍यम अवधि जो 4 से 10 दिनों के लिए होता है और चौथा विस्‍तृत अवधि जो 10 से ज्‍यादा दिनों के लिए होता है. इनमें से मध्‍यम अवधि वाली भविष्‍यवाणियों को ज्‍यादातर सही होते देखा जाता है. जिसको आमतौर पर लोग आने वाले 7-8 दिनों का फोरकास्ट कहते हैं.</p>
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