उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान द्वारा अध्यक्ष डॉ. वाचस्पति मिश्र जी और निदेशक पवन कुमार जी के सानिध्य में अनवरत रूप से कराए जा रहे प्रथम स्तरीय और द्वितीय स्तरीय शिक्षण योगी आदित्यनाथ के स्वप्न को साकार करने के लिए उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं ।
योजनासर्वेक्षिका डॉ. चन्द्रकला शाक्या, प्रशिक्षणप्रमुख सुधीष्ठ मिश्र और समन्वयक धीरज मैठाणी के निर्देशन में संचालित की जा रही इन संस्कृत संबंधी शिक्षण कक्षाओं में सायंकालीन सत्रों में चर्चा-परिचर्चा के माध्यम से उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के सहशिक्षण प्रमुख और संस्कृतभारती संगठन दिल्ली प्रांत के सहप्रांतमंत्री सुशील जी के प्रेरणादायी वचनों को सुनने का अवसर प्राप्त हुआ ।
जूते के उद्योग के दो प्रतिनिधियों के द्वारा भारत में आकर जूते विक्रयण के प्रति दोनों का पृथक् दृष्टिकोण से संस्कृतमय चिंतन, होम्योपैथिक की छोटी सी गोली का उदाहरण देकर संस्कृत भी किस प्रकार हमें होम्योपैथिक गोली के समान ही अपने औषधीय गुणों से लाभ पहुॅंचाती आ रही है और ज्ञानं संरक्षितं भवति आत्मनि अर्थात् ज्ञान का संरक्षण आत्मा में ही होता है ।
सुशील जी ने अपने वक्तव्य में बताया कि हम एक राष्ट्र हैं, हम ही इस राष्ट्रीय के आभूत घटक हैं ऐसी भावना को जन्म देने वाली यदि कोई भाषा है तो वह संस्कृत है । गीता कक्षा, आयुर्वेद कक्षा और शास्त्र कक्षा आदि योजनाओं के विषय में बताते हुए उन्होंने भविष्य में संस्कृत के साथ जुड़कर और अन्य लोगों को जोड़कर इसका प्रचार-प्रसार करने के लिए प्रेरित किया ताकि अन्य लोग भी उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के द्वारा चलाई जा रही संस्कृत कक्षाओं का लाभ लेकर अपने जीवन को उन्नति के पथ पर अग्रसर कर सकें । जब धूम्रपान से संबंधित उद्योग करोड़ों रुपए खर्च करके उसका प्रचार कर सकते हैं तो क्या हम संस्कृत का प्रचार नहीं कर सकते जिसके माध्यम से हमें जीवन में अनेकों लाभ प्राप्त होते हैं ऐसे प्रेरणादायी के द्वारा न केवल शिक्षार्थी अपितु संस्थान के सभी प्रशिक्षक लाभान्वित हुए ।
कक्षा में उपस्थित शिक्षार्थियों द्वारा संस्थान, संस्कृत के प्रति और प्रशिक्षकों शशिकांत, मनीष कुमार मिश्र, डॉ. हसन खान , गणेश द्विवेदी, ओम द्विवेदी, पंकज शर्मा ,अमित सामवेदी और सविता मौर्या के प्रति विचार व्यक्त करते हुए बताया गया कि शालीनता, मधुरता एवं सुष्ठुता के साथ संस्कृत का ऐसा अपूर्व शिक्षण और प्रशिक्षण हमारे जीवन का किस प्रकार से अभिन्न अंग बन गया है और साथ में संस्थान के द्वारा चलाया जा रहा यह प्रशिक्षण किस प्रकार हमारे ऊपर थोपी गई भाषा से रंगे सियारों को पुनः सचेतन करने का कार्य कर रहा है इसके लिए धन्यवाद जैसा शब्द भी बहुत ही लघु है या ऐसा कहा जाए कि वह अपना अर्थ ही खो देता है तो अतिशयोक्ति न होगी ।