New Delhi – वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल का डेटा और वैक्सीनेशन के बाद के उसके प्रभाव का डेटा पब्लिक करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने सभी पक्षों के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा। टीकाकरण के राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार ग्रुप के पूर्व मेंबर जैकब पुलियेल ने ये याचिका दायर की थी।
याचिका जनहित में नहीं है- केंद्र सरकार
इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था। जवाब में केंद्र ने कहा था- COVID-19 टीकाकरण के खिलाफ किसी भी तरह के प्रोपगेंडा से वैक्सीन लगाने के लेकर हिचकिचाहट बढ़ेगी और संदेह पैदा होगा, जो जनहित में नहीं होगा। इस तरह की याचिका राष्ट्रीय हित के खिलाफ है और लोगों के टीकाकरण के अधिकारों का उल्लंघन करेगी।
टीकाकरण ट्रायल डेटा पब्लिक है
केंद्र ने अपने जबाव में यह भी कहा कि टीकों के परीक्षण और अप्रूवल के लिए एक वैधानिक व्यवस्था है और इसका पालन किया गया है। क्लिनिकल ट्रायल में हिस्सा लेने वाले लोगों के बारे में जानकारी देने वाले डेटा के अलावा सब कुछ पब्लिक है। इन लोगों का डेटा पब्लिक करना नियमों और दिशा-निर्देशों के खिलाफ है।
केंद्र ने याचिका को खारिज करने की मांग करते हुए कहा कि याचिका ने मानव जाति के सामने एक त्रासदी से निपटने के लिए राष्ट्र के प्रयासों के खिलाफ आवाज उठाई है।
ICMR के नियम के तहत डेटा सार्वजनिक करना जरूरी
याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि वैक्सीन के प्रभाव और क्लिनिकल ट्रायल का मामला अर्जी में उठाया गया है जो बेहद अहम है। क्लिनिकल ट्रायल और वैक्सीन प्रभाव का डेटा सार्वजनिक किया जाना ICMR के नियम के तहत जरूरी है।
टोल फ्री नंबर पर मिले डेटा
याचिकाकर्ता ने कहा कि जो भी प्रतिकूल प्रभाव का डेटा है उसे टोल फ्री नंबर पर लोगों को बताया जाए। साथ ही ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि अगर कोई टीकाकरण करवा रहा है और प्रतिकूल प्रभाव हुआ है तो वह इस बारे में शिकायत कर सके।

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