आत्मा को झकझोर देने वाला फिर से बहुत ही दर्दनाक और शर्मनाक हादसा धिक्कार है ऐसे देश, समाज और कानून पर जहाँ महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं कितनी बार हैवानियत की हदे पार की जाएंगी और कितनी निर्भया, आशिफ़ा और मनीषा मौत के घाट उतारी जाएंगी सबसे ज्यादा शर्म की बात तो ये है की आज केवल बलात्कार के आरोपी गुंडे या समाज के असामाजिक तत्व ही नहीं हैं बल्कि संत, बाबा, पुलिसकर्मी, वकील, जज, शिक्षक, मंत्री, डॉक्टर, इंजीनियर, अभिनेता, सामाजिक कार्यकर्ता तक ऐसे दुष्कर्मो के आरोपी हैं हमारे परिवार के रिश्तेदार दोस्त, प्रेमी ही क्या बल्कि पिता और भाई तक ऐसी हिंसा मे लिप्त पाए गए हैं आखिर कहाँ जाए महिलाएं समाज मे महिलाओ का होना ही जैसे अपराध हों गया है महिलाओं के साथ ऐसी दर्दनाक घटनाए होना इस देश पर भारतीय समाज व संस्कृति पर कलंक है अगर किसी महिला को इतना दर्द सहने के बाद अपनी जान गवाने के बाद इंसाफ मिल भी जाए तो क्या किसी परिवार को उसकी बेटी वापस मिल जाएगी निर्भया की तरह मान लो मनीषा को भी देर सवेर न्याय मिल ही जाएगा तो क्या गारंटी है की दूसरी निर्भया या मनीषा पैदा नहीं होगी ऐसी दरिंदगी फिर किसी लड़की के साथ नहीं होगी. मेरा इस पूरे समाज से ये कहना है की सबसे पहले महिलाओं को उपयोग की वस्तु समझना बंद करो दोषी पूरा समाज है ये दरिंदे भी हमारे ही समाज में रहते है पलते हैं बड़े होते हैं समाज अपनी मानसिकता बदले क्यू की कुछ नहीं होगा मोमबत्तीयां जलाने से पुतले फूकने से नारे लगाने से कभी बेटियां सुरक्षित नहीं होंगी इस देश में ऐसे दरिंदो के खिलाफ कानून इतने कड़े बनाए जाएं की अपराध करने से पहले इनकी रूह कांप जाए ये सोचकर भी की इस अपराध को करने का अंजाम कितना भयानक होगा नहीं तो हर रोज एक निर्भया मौत के घाट उतारी जाएगी.