रिपोर्ट- सृजित अवस्थी

पीलीभीत. बढ़ते प्रदूषण के बीच पूरे उत्तर भारत में पराली जलाना बीते कई सालों से परेशानी का सबब बना हुआ है. एक ओर पराली प्रबंधन को लेकर केंद्र सरकार व राज्य सरकार की तरफ से लगातार जागरुकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर कई किसान ऐसे भी हैं जो पराली का प्रबंधन करने के साथ ही साथ अपनी फसलों की पैदावार और खेतों की सेहत को भी सुधार रहे हैं. दरअसल पीलीभीत के पूरनपुर इलाके के रहने वाले पुष्पजीत सिंह लम्बे समय से जैविक खेती को बढ़ावा देने के क्षेत्र में काम कर रहे हैं. पराली की बढ़ती समस्या के बीच उन्होंने खाद बनाने के इतर धान की पराली को केले की फसल में भी इस्तेमाल किया है.

NEWS 18 LOCAL से बात करते हुए पुष्पजीत बताते हैं कि आमतौर पर केले की फसल पर सर्दियों के मौसम का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. देखने में लगता है कि केले के पेड़ नष्ट होने की कगार पर हैं, लेकिन केले पेड़ों की क्यारी में पराली बिछा देने से मौसम का प्रभाव न्यूनतम हो जाता है. वहीं, खेत की सेहत सुधरने से केले की पैदावार में भी बढ़ोतरी होती है.

पराली को खेतों में बिछाने के फायदे
पुष्पजीत सिंह ने न्‍यूज़ 18 लोकल से खास बातचीत में बताया कि पराली को कम अवधि वाले फलों, सब्जियों की फसलों में उपयोग करने से पर्यावरण के इतर भी कईफायदे हैं. खेतों में उगने वाली घास लगभग खत्म हो जाती है. साथ ही साथ खेतों में नमी अधिक समय तक बरकरार रहती है. वहीं, खेत की मिट्टी की सेहत सुधरती है. खासकर केले के खेत की मिट्टी को सर्दियों के मौसम में शीतलहर से बचाती है. जबकि पराली के उपयोग पर अधिक जानकारी देते हुए कृषि वैज्ञानिक डॉ. एसएस ढाका ने बताया कि फसलों के लिए पराली सबसे बेहतर खाद है. अगर पराली के उपयोग से केले की फसल बढ़ाई जा सकती है, तो अन्य फसलों पर इसका और अधिक अनुकूल प्रभाव पड़ना तय है.

Tags: Agriculture Laws, Pilibhit news, Stubble Burning

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