आगे की लाइन में शोभिता लिखती हैं, ‘और भी दुख है, जमाने मैं मुहब्बत के सिवा, रहातें और भी हैं, असल की राहत के सिवा. अनगिनत सदियों के तारिक बहिमाना तिलिस्म. रेशम-ओ-एटलस-ओ-कमखाब मैं बनवाये हुए. जबजा बिकते हुए कूचा-ओ-बाजार में जिस्म. खाक में लथे हुए, खून में नेहलाये हुए, जिस्म निकले हुए अमराज के तनूरों से. झलक बहती हुई गलत हुए नसूरों से. लौट जाती है उधर को भी नज़र, काया कीजे? अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मगर काया कीजे? और भी दुख है जमाने में मोहब्बत के सिवा. रहातें और भी हैं असल की राहत के सिवा..मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग.’ (Photo Source- Sobhita Dhulipala Instagram) 

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