महामारी कोरोना की बड़ी मार मिठाई के कारोबार पर भी पड़ी है। अगर प्रशासन द्वारा होम डिलीवरी के साथ ही नियमित मिठाईयों की दुकान खोलने की अनुमति मिलती भी है, तो मिठाई कारोबारी सिर पकड़ कर घरों में ही बैठे रहेंगे। ऊहापोह में डूबे हलवाइयों के सामने सबसे बड़ी और गंभीर चुनौती यह है कि लजीज मिठाइयां बनाने वाले कारीगरों को वह ढूंढकर कैसे लाएं। उपजे हालात में हताश व निराश कारोबारी भरे मन से कहते हैं कि लजीज मिठाइयों के लिए मोदीनगर को अभी महीनों इंतजार करना होगा।
अपने-अपने घरों को लौटे कारीगर
मोदीनगर व आसपास के विभिन्न क्षेत्रों में मिठाइयों का कारोबार पश्चिम बंगाल, बिहार व उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में रहने वाले कारीगर व मजदूरों के कंधों पर टिका है। इसे सहर्ष स्वीकारने वाले मिठाई कारोबारी निखिल अग्रवाल बताते हैं कि कोरोना संक्रमण काल और लॉकडाउन के कारण मोदीनगर से मजदूरों व मिठाई के कारीगरों का पलायन हो चुका है। कारीगरों व मजदूर अपने घरों को लौट चुके हैं। ऐसी स्थित में मिठाई की दुकानों को नए सिरे से खोलना बड़ी चुनौती है। जो मजदूर पलायन कर चुके हैं, वह असुरक्षा के भाव से ग्रसित हैं। उनके मन में कोरोना का खौफ है। लौटने के एवज में पास व वाहन मांग रहे हैं। ऐसी सुविधाएं फिलहाल मुहैया कराना मुमकिन नहीं है। ऐसे में एक मात्र विकल्प उपलब्ध संसाधन से ग्राहकों को संतुष्ट करना है। फिलहाल ग्राहकों को पूड़ी, कचैड़ी, जलेबी जैसी खाद्य सामग्री ही मुहैया कराई जा सकती है। लजीज मिठाइयों का लंबा इंतजार सभी को करना होगा।
