मोदीनगर। सोलह दिवसीय श्राद्ध भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को 20 सितंबर से शुरू हो रहे हैं। पितृ पक्ष में किए गए श्राद्ध या पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। इससे कर्ता को पितृ ऋण से भी मुक्ति मिल जाती है। शुभ कार्यों के लिए सिर्फ दो दिन का समय है।
अमावस्या का श्राद्ध है श्रेष्ठ
इस साल श्राद्ध 20 सितंबर से शुरू होकर आश्विन माह की अमावस्या को यानि 6 अक्टूबर को समाप्त होंगे। इसमें किसी भी महीने की कृष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष पूर्णिमा से चतुदर्शी को हुए स्वर्गवास वालों का श्राद्ध तिथि वार किया जाता है। अमावस्या का श्राद्ध श्रेष्ठ माना गया है। इस दिन भूली-बिसरी तिथि सहित सभी का श्राद्ध किया जा सकता है। श्राद्ध या पिंडदान प्रमुखतया तीन पीढ़ियों तक के पितरों को दिया जाता है। पितृपक्ष में किये गए कार्यों से पूर्वजों की आत्मा को तो शांति प्राप्त होती ही है
तिथिवार श्राद्ध करने का महत्व
तिथि, श्राद्ध का महत्व
पूर्णिमा, अच्छी बुद्धि, पुत्र-पौत्रादि व ऐश्वर्य की प्राप्ति
प्रतिपदाए धन व संपत्ति में वृद्धि
द्वितीया, अत्यंत सुख की प्राप्ति
तृतीया, शत्रु व समस्त कष्टों से मुक्ति
चतुदर्शी, शत्रुओं से होने वाले अहित पहले से ज्ञान होता है
पंचमी, सुख व समृद्धि मिलती है
षष्टी, सम्मान मिलता है
सप्तमी, महान यज्ञों को पुण्य फल की प्राप्ति
अष्टमी, संपूर्ण समृद्धियों की प्राप्ति
नवमी, ऐश्वर्य की प्राप्ति
दशमी, धन संपदा बनी रहती है
एकादशी, वेदों का ज्ञान व ऐश्वर्य मिलता है
द्वादशी, घर में अन्न की कमी नहीं होती
त्रयोदशी, श्रेष्ठ बुद्धि, संतति, दीर्घायु व ऐश्वर्य की प्राप्ति
तुदर्शी, अज्ञात भय का खतरा नहीं रहता
अमावस्या, अनंत सुख की प्राप्ति होती है
हरमुखपुरी गणेश मंदिर के पंड़ित व प्रसिद्व ज्योतिषाचार्य पं0 उदय चन्द्र शास्त्री का कहना है कि अमावस्या का श्राद्ध श्रेष्ठ माना गया है। पितृ विसर्जन और सर्वपैत्री भी इसी दिन मनाया जाएगा। अमावस्या के श्राद्ध के साथ ही इस दिन महालया की भी समाप्ति हो जाएगी, ओर श्राद्ध में लगातार 16 दिन तक तर्पण करने पर बच्चों को अनवरत पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता रहता है। श्राद्ध में काले तिल, जौ, चावल, सफेद पुष्प व चंदन से तर्पण करना श्रेष्ठ रहता है।