समर वीर गोकुल जाट ने किसानों को हल के साथ तलवार भी थमा दी थी, इसलिए सहस्त्र किसान क्रांति के जनक कहलाये
गांव रोरी मे वीर गोकुला जाट का 352 वे बलिदान दिवस की पूर्व संध्या पर श्रद्धांजलि दी । सर्व प्रथम दीप प्रज्ज्वलित कर गोकुला जी के चित्र पर पुष्प अर्पित किये!
बाबा परमेन्द्र आर्य ने अपने उदबोधन मे कहा वीर योद्धाओं की जयंती व बलिदान दिवस मनाने का उद्देश्य यहां है कि आने वाली पीढ़ीया महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लेकर देश व समाज में हो रहे अत्याचार से लडना सिखे। जो भी अन्याय से लडता है उसी का इतिहास में नाम दर्ज हो जाता है। लेकिन आजादी के बाद जो इतिहास लेखन का कार्य हुआ उसमें बहुत सारे ऐसे योद्धाओ के बारे में नहीं लिखा गया जिन्होंने देश व धर्म के लिए बहुत बड़ी बड़ी लड़ाईयां लडी व विदेशी आक्रांताओं के दांत खट्टे किये। गोकुल जाट को इतिहास मे उचित स्थान देना चाहिए था! क्योंकि उन्होंने औरंगजेब जैसे अत्याचारी शासक के विरुद्ध बगावत कर पुरे उत्तर भारत में सहस्त्र किसान क्रान्ति का बिगुल बजा दिया था और किसानों की एक सेना बना ली जिससे लड़ने के लिए मुगल सैनिक डरने लगे थे। गोकुला जाट की वीरता और साहस को देखकर औरंगजेब को स्वयम लड़ने के लिए दिल्ली छोड़कर मथुरा आना पड़ा था। औरंगजेब की तोपों, हाथीयों व घुड़सवारों की विशाल सेना से गोकुला चार दिन तक युद्ध लडता रहा अन्त में उन्हें परिवार व 7000 किसानों सहित बंदी बना लिया गया। 01जनवरी1670 को आगरा के लालकिले में इस्लाम कबूल न करने पर साथीयों सहित जलादो से टुकड़े टुकड़े करके मरवा दिया गया। औरंगजेब की इस बर्बरता से पुरे ब्रज प्रदेश में मुगलों के खिलाफ नफरत की आग फैल गई और मुगलिया सल्तनत के समाप्त होने तक गोकुला जाट के वंशज व अनुयाई लड़ते रहे।
राणा राम राम आर्य ने कहा औरंगजेब के अत्याचारों से तंग आकर किसानों ने लगान देने बन्द कर दिया जिससे खफा होकर मुगलिया सैनिकों ने किसानों के घरों को लुटना शुरू कर दिया और पालतू पशुओं को छीनकर ले जाने लगे। गोकुला के नेतृत्व में किसानों ने मुगलों की छावनियों पर हमला करना शुरू कर दिया और अब्दुन्नवी फौजदार को मार दिया और पुरी छावनी को नष्ट कर दिया गोकुल ने औरंगजेब के सेनापतियो से तीन लड़ाई जीत ली थी। लेकिन तिलपत की गढ़ी पर जब औरंगजेब की तोपों ने हमला कर नष्ट कर दिया तो गढ़ी से बहार निकल कर जाटनीयो ने पुरूषों के साथ मोर्चा संभाला और अंतिम समय तक गोकुला जाट के नेतृत्व में लडती रही तिलपत की लड़ाई में कुछ महिलाएं लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुईं और कुछ महिलाओं को अपना सतीत्व बचाने के लिए जौहर भी करना पड़ा। तिलपत का युद्ध इतिहास में दर्ज न होना दूर्भाग्य की बात है!
श्रद्धांजलि अर्पित करने वाले मे कल्याण चौधरी, मनोज कलकल, चौधरी गंगाराम, अमरजीत, अभिमन्यु, सरोज देवी, वीरांगना संजू चौधरी, अंजली आर्य आदि उपस्थित रहे।