मोदीनगर। गणेश महोत्सव पर कोरोना का ग्रहण ऐसा लगा कि मूर्ति बनाने वालों का भी कारोबार चैपट हो गया। राजस्थान के उदयपुर से आकर बीते 19 सालों से मूर्ति बनाने का काम करने वालों के चेहरे पर चमक नहीं है, जो दो साल पहले तक होती थी।यंहा तहसील के निकट स्थित हाइवे के किनारे दो परिवारों की महिलाएं, पुरुष मूर्ति बनाते आ रहे हैं, जो यंहा आसपास के क्षेत्रों में जाकर मूर्ति बेचते हैं। इस बार भी मूर्तियां बेचने को यहां से लदान करने लगे हैं। लेकिन, इस बार भी कम मूर्तियां बिकने से मायूसी है।एक महीने में परिवार की महिलाएं और पुरुष दस से 12 हजार रुपये प्रति महीना कमा लेते थे। जिससे परिवार के सभी सदस्यों की कमाई एक लाख से ऊपर गणेश महोत्सव पर हो जाती थी। पांच से आठ फीट की बड़ी मूर्तियों की बिक्री कम होने से इस बार भी छोटी मूर्तियों में दो से ढाई फीट की मूर्तियां बिकी थी। जिससे गणेश पूजा की परंपरा न टूटे। मूर्तिकारों की मानें तो चार महीने पहले से गणेश महोत्सव की तैयारी करते हैं और दो महीने पहले से आर्डर मिलने लगते हैं। दो बार से बड़ी मूर्तियों की बुकिंग 30 तक ही पहुंची है। करीब 400 मूर्तियां छोटी से बड़ी बनकर तैयार हैं, जिससे तहसील क्षेत्र में बेचने के यह दोनों परिवार चार से पांच दिन पहले निकल जाते हैं।
पिछले साल भी मूर्तियों की बिक्री कम हुई थीं। जिससे नई मूर्तियों के अलावा पिछले साल की मूर्तियों पर पेंट भी कर रहे हैं। उम्मीद है कि गणेश महोत्सव के दिन तक बिक्री बढ़ जाए।  बताते हैं कि गणेश महोत्सव पर छोटी और बढ़ी मूर्तियां मिलाकर करीब 1000 मूर्तियां बिक जाती थीं। जिन्हें तैयार करने में रात में जुटना पड़ता था। मूर्तिकार हरदीप सिंह ने बताया कि दो बार से गणेश महोत्सव पर हमारे दोनों परिवारों की प्रति व्यक्ति आमदनी करीब 3000 प्रतिमाह तक रह गई है। जबकि दस से 12 हजार कमा लेते थे। दौलतराम का कहना है कि पिछले साल का हाल देखकर इस बार मूर्तियां कम बनाई हैं। पहले अगर सौ मूर्तियां बुक होती थीं, तो अबकी बार मात्र 30 हुई हैं। नंदू ने बताया कि छोटी से बड़ी मूर्ति खूब बिकती थी। दो बार से छोटी ही बिक रही है, क्योंकि बहुत कम लोग अनुमति न मिलने से झांकियों का आयोजन नहीं कर रहे हैं।

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