घर से स्कूल और वहां से वापसी पर होमवर्क में उलझे बच्चे न दादा दादी के पास बैठ पाते थे और न उनकी कहानियों अनुभवों से सीखने का मौका मिलता। संस्कार शब्द के मायने उनसे दूर होते जा रहे थे।
लॉकडाउन हुआ तो सबसे बड़ी चिंता उन बच्चों के व्यवहार को लेकर शुरू हुई। उनके संयम और धैर्य को लेकर मां पिता की फिक्र जायज था, कि कोरोना संक्रमण काल में वे किस तरह चैबीस घंटे घर के अंदर रह सकेंगे। कैसे उन्हें समझाया जा सकेगा कि घर से बाहर नहीं जाना है। लॉकडाउन शुरू हुआ तो इस अंदेशों से एकदम अलग तस्वीर सामने आई। दादा दादी की कहानियां फिर जीवंत हो गई। टीवी पर रामायण के प्रसारण ने सभी अनुकरणीय पात्रों को दिमाग में बैठा दिया। इसके साथ ही बच्चों ने इनोवेशन के जरिये इस वक्त को काट लिया। पढ़ाई की नई ऑनलाइन विधा को भी उन्होंने खूब स्वीकारा।
मनमोहन सिंह रावत की बेटी ट्यिा रावत कक्षा 9 वीं की छात्रा है। लॉकडाउन के दौरान रामायण देख ऐसी प्रभावित हुआ कि उसने घर में ही तलवार, धनुष बाण, भाला जैसी तमाम चीजें यू ट्यूब की मदद से कागज की बना लीं। रावत बताते है कि पहली बार बेटी ने रामायण देखी है। उसे नई चीजें बनाने में रुचि है। पढ़ाई की वजह से समय नहीं मिलता था। लॉकडाउन में बहुत सी नई चीजें सीखी।
दोस्तों की मदद से बनाई शॉर्ट मूवी
कक्षा सात के छात्र देवांश सोनी ने लॉकडाउन की छुट्टियों में पढ़ाई के साथ लेखन, चित्रकारी के अलावा तीन दोस्तों संग मिलकर शॉर्ट मूवी बनाई। इसके लिए पहले कहानी लिखी। फिर दोस्तों सग मिलकर एडवेंचर पर पांच से छह मिनट की मूवी बनाई। देवांश बताते है कि मम्मी कुसुम सोनी शिक्षिका हैं। उनसे छुटिट्यों में खूब कहानी सुनी। रामायण में लव कुश कौन थे, यह भी जाना। लॉकडाउन में बच्चों का वास्तविक पारिवारिक माहौल मिला जिसमें बुजुर्गो के पास बैठकर कहानियां सुनने को मिलीं। इनसे जो सीख मिलती है, वह जिंदगी भर याद रहती है। इस अवधि में बच्चों के व्यक्तित्व का भी विकास हुआ ओर प्रतिभाएं भी निखरी।