New Delhi – देश में समुद्र तट के किनारे मौजूद शहरों पर समुद्र के बढ़ते जलस्तर को लेकर चौंकाने वाली एनालिसिस सामने आई है। ग्लोबल रिस्क मैनेजमेंट फर्म RMSI के मुताबिक, मुंबई, कोच्चि, मैंगलोर, चेन्नई, विशाखापट्टनम सहित तिरुअनंतपुरम में कई बड़ी इमारतें और सड़कें 2050 तक डूब जाएंगी।
RMSI के एनालिसिस में पाया गया है कि मुंबई के हाजी अली दरगाह, जवाहर लाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट, वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे, बांद्रा-वर्ली सी-लिंक के डूबने का खतरा है। RMSI ने यह बात इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की छठवीं असेसमेंट रिपोर्ट के आधार पर कही है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन के नए डाटा और प्रभाव को लेकर बनाए गए मॉडल का भी इस्तेमाल किया गया।
जलवायु परिवर्तन को लेकर पब्लिश की गई सबसे लेटेस्ट इस रिपोर्ट का नाम ‘क्लाइमेट चेंज 2021: द फिजिकल साइंस बेसिस’ है। इस एनालिसिस के लिए देश के 6 तटीय शहरों, मुंबई, चेन्नई, कोच्चि, विशाखापट्टनम, मैंगलोर और तिरुअनंतपुरम को शामिल किया गया।
RMSI के एक्सपर्ट्स ने इन शहरों के समुद्री किनारे के लिए एक हाई रिजॉल्यूशन डिजिटल मॉडल तैयार किया। इसके बाद जलस्तर और बाढ़ को मापने के लिए एक मैप तैयार किया। IPCC ने अनुमान जताया है कि 2050 तक भारत के चारों ओर समुद्र का जलस्तर काफी बढ़ जाएगा।
जलवायु परिवर्तन को लेकर मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेस (MoES) ने भी कहा है कि नॉर्थ इंडियन ओशन (NIO) के जलस्तर में साल 1874-2004 के दौरान हर साल 1.06-1.75 मिमी की रेट से बढ़ोतरी देखी गई। वहीं, 1993-2017 के दौरान हर साल 3.3 मिमी का इजाफा हुआ। दोनों ही मामलों में यह बढ़ोतरी दुनिया भर में समुद्र के जलस्तर में हो रहे औसत बढ़ोतरी रेट के बराबर है।
IPCC का अनुमान है कि 2050 में नॉर्थ इंडियन ओशन का स्थिर जलस्तर 1986 से 2005 के दौरान रहे जलस्तर के मुकाबले करीब 300 मिमी यानी 1 फुट बढ़ जाएगा। MoES की रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक औसत वृद्धि के लिए ये अनुमान करीब 180 मिमी है।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटियरोलॉजिकल डिपार्टमेंट के जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने मीडिया को बताया कि तटीय शहरों के डूबने का एकमात्र फैक्टर समुद्र के जलस्तर में इजाफा ही नहीं है। तटीय इलाके पहले से ही जलवायु परिवर्तन का खामियाजा भुगत रहे हैं।
मौजूदा समय में चक्रवात, तूफान और भारी बारिश की घटनाएं बढ़ रही हैं। ये तटीय बाढ़ का कारण बनती हैं। पिछले चार दशकों में पश्चिमी तट पर चक्रवातों में 52% का इजाफा हुआ है। 1950 के दशक के मुकाबले भारी बारिश में 3 गुना बढ़ोतरी देखी गई है। 2050 तक वैश्विक तापमान परिवर्तन 2 डिग्री सेल्सियस के करीब होगा। इसके बाद चक्रवातों और भारी बारिश में और भी तेजी आएगी।
मैथ्यू ने कहा- समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी और इन सभी घटनाओं से तटीय बाढ़ बढ़ सकती है, जिसका असर एक बड़े इलाके पर पड़ेगा। हमें इन घटनाओं पर तत्काल निगरानी और स्टडी करने की जरूरत है, ताकि आपदा के समय चेतावनी के लिए एक सिस्टम तैयार किया जा सके।
एनालिसिस में पाया गया कि साल 2050 तक मुंबई में करीब 998 इमारतों और 24 किमी लंबी सड़क पर जलस्तर बढ़ोतरी का असर पड़ेगा। वहीं, हाई टाइड के दौरान करीब 2,490 इमारतें और 126 किमी सड़क प्रभावित होगी।
चेन्नई में इस वजह से 55 इमारतों और 5 किमी लंबी सड़क को खतरा होगा। इनमें अधिकतर निचले इलाकों में मौजूद रिहायशी बिल्डिंग्स होंगी। कोच्चि में 2050 तक करीब 464 इमारतों के प्रभावित होने की संभावना है। हाई टाईड के दौरान यह संख्या बढ़कर लगभग 1,502 हो जाएगी।
तिरुअनंतपुरम में यह आंकड़ा 349 और 387 इमारतों का रहेगा। वहीं, विशाखापट्टनम में 2050 तक करीब 206 घर और 9 किमी सड़क नेटवर्क डूबने की संभावना है।
RMSI के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट पुष्पेंद्र जौहरी ने कहा- तटीय शहरों से कितना पानी अंदर के इलाकों में जाएगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि हमारे पास किस तरह का कॉन्टिनेंटल शेल्फ है। कॉन्टिनेंटल शेल्फ समुद्र के नीचे डूबा हुए कॉन्टीनेंट का किनारा होता है। जलस्तर में बढ़ोतरी का असर अलग-अलग इलाकों में अलग- अलग होगा।
हम अपनी रिपोर्ट को प्रभावित राज्य सरकारों तक पहुंचने का इरादा रखते हैं। इसे हम वर्ल्ड बैंक और नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी को भी शेयर करेंगे। जोहरी ने कहा कि इससे निपटने के लिए हम कुछ कदम उठा सकते हैं। इनमें सड़कों की ऊंचाई बढ़ाना और इमारतों को जंग के खिलाफ मजबूत करने जैसे प्रयास किए जा सकते हैं।