साहिबाबाद : ये हौसले भी किसी हकीम से कम नहीं, यह हर तकलीफ को ताकत बना देते हैं…कविता की यह लाइनें टीएचए की तीन महिलाओं पर बिल्कुल सटीक बैठ रही हैं। इन्होंने ब्रेस्ट कैंसर जैसी बीमारी में हिम्मत नहीं हारी और आत्मविश्वास व प्रेम के बूते दो वर्षों में ही जिंदगी खुशियों से रंगीन कर ली। अब इनके कदम उन महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ा रहे हैं, जो अपनी जिंदगी को कोरा पन्ना मानकर मायूस हो चुकी हैं। सात नवंबर को राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस पर प्रस्तुत है कैंसर से जंग जीती महिलाओं से बातचीत –
मायूसी छोड़ें, कैंसर के बाद भी है सुनहरी है जिंदगी :
वैशाली निवासी स्नेहा रोटरी ने बताया कि वह ब्रेस्ट कैंसर होने के बाद बहुत डर गई थीं। हंसते-खेलते परिवार में अचानक कैंसर ने जिंदगी को बदल दिया। वह आर्किटेक्ट डिजाइनर हैं।बीमारी के दौरान उन्हें काम छोड़ना पड़ गया। बेटी भी चार वर्ष की थी। कैंसर मरीजों के लिए कोई काउंसिलिंग सेंटर या मोटिवेट करने वाला नहीं था। तब उन्होंने खुद आत्मविश्वास बढ़ाया और हौसला फाइट अगेंस्ट कैंसर मुहिम शुरू की थी। उन्होंने गांवों में कैंप लगाकर लोगों को जागरूक किया। वह बताती हैं कि किताब और ऑनलाइन वेबसाइट में उन्होंने कैंसर से उबरने के बारे में काफी पढ़ा था। जिससे उन्हें पॉजिटिव ऊर्जा मिली और परिवार का सपोर्ट भी पूरा मिला। गांवों में कैंप के दौरान देखा कि बच्चे, बूढ़े और जवान हर वर्ग को यह बीमारी होती है। तब उन्हें ठीक होता देखकर वह खुश हुईं और फिर सोचा कि मायूसी छोड़ो, कैंसर के बाद भी एक सुनहरी जिंदगी है। जो हिम्मत और हौसला है उसे दुनिया को दिखाना है। वह प्रतिवर्ष कैंसर मरीजों का फैशन शो कराती हैं। हौसला मुहिम से दिल्ली – एनसीआर के सौ से ज्यादा लोग जुड़े हैं। पॉजिटिव ऊर्जा से दो वर्ष में ही बीमारी को दूर कर दिया।
कैंसर को हराया, अब दूसरे को करती हैं प्रोत्साहित :
वसुंधरा निवासी अल्पना सिन्हा को 42 वर्ष में ब्रेस्ट कैंसर का पता चला तो पूरे परिवार को गहरा सदमा लग गया। उस समय परिवार में बेटी की उम्र छह वर्ष और बेटा नौ वर्ष का था। आर्थिक और मानसिक तौर पर परेशान रहने के दौरान परिवार और रिश्तेदारों के सपोर्ट मिलने पर उन्हें संभलने में मौका मिला। एक निजी अस्पताल में डेढ़ वर्ष तक इलाज के दौरान सिर के सारे बाल उतर गए थे। तमाम परेशानियों को पीछे छोड़कर घर के सदस्य और रिश्तेदारों के सपोर्ट ने उनकी जिंदगी ही बदल दी। उन्होंने रोजाना प्राणायम और सूर्य नमस्कार शुरू कर दिया। उन्होंने कैंसर को भूलकर दूसरे कैंसर मरीजों को प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया। लोगों से मिलना-जुलना और खुद को हमेशा पॉजिटिव रखने से रिकवरी ग्रोथ चार गुना हो गई। वह दिल्ली-एनसीआर में महिलाओं के साथ सामाजिक कार्यक्रमों में बतौर अतिथि हिस्सा लेती हैं। जिसमें 70 से अधिक कैंसर लोगों को इस बीमारी से बाहर आने के लिए प्रोत्साहित कर चुकी हैं।
रैंप वॉक ने बदल दी थी जिंदगी :
लज्जा गुप्ता का कहना है कि वर्ष 2015 में कैंसर होने के बाद अस्पताल में इलाज शुरू हुआ था। लेकिन इस बीमारी का एहसास होने पर वह घबराई नहीं और सबसे पहले अपनी डॉ. ननद को जानकारी दी। तब डॉ. ने उन्हें टेस्ट कराने के लिए कहा। रिपोर्ट में कैंसर आने के बाद अस्पताल में जाकर भर्ती हो गईं। इससे पहले उन्हें किसी ने कैंसर के बारे में कोई जानकारी नहीं दी थी। ऑपरेशन होने के बाद बेटी ने कहा मां आप ठीक हो, घर चलते हैं। बेटी और परिवार के सपोर्ट ने मुझे काफी बल दिया।अब वह रोजाना मेडिटेशन करती थीं। तो बीमारी के दौर में उन्होंने अपनी बॉडी में निगेटिव सोच को नहीं आने दिया। वह बताती हैं कि एक दिन पड़ोसी के कैंसर जागरूकता अभियान कार्यक्रम में रैंप वॉक किया तो अलग ही पॉजिटिव एनर्जी मिली। तब उनके अंदर बीमारी से उभरने के लिए इतना कॉन्फिडेंस हो गयाकि अब उन्हें कुछ नहीं होने वाला। वह अब गुड़गांव, दिल्ली-फरीदाबाद और गाजियाबाद में कैंसर जागरूकता कार्यक्रम में रैंप वॉक करने के लिए विशेषतौर पर जाती हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *