Chaitra Navratri 2023 Day 7, Maa Kaalratri Katha:

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। 
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा। 
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥

चैत्र नवरात्रि का पावन पर्व देशभर में बड़े ही धूमधाम और भक्तिभाव के साथ मनाया जा रहा है. नवरात्रि में पूरे नौ दिनों तक मां दुर्गा के अलग-अलग नौ रूपों की पूजा करने का महत्व है. नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री, दूसरे दिन मां ब्रह्माचारिणी, तीसरे दिन मां चंद्रघंटा, चौथे दिन मां कुष्मांडा, पांचवे दिन मां स्कंदमाता और छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की गई. अब नवरात्रि के सातवें दिन मंगलवार 28 मार्च 2023 को मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा की जाएगी. मां कालरात्रि की पूजा करने से आसुरी शक्तियों और दुष्टों का विनाश होता है. मां कालरात्रि का पूजा मंत्र है-

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ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम: 

मां कालरात्रि का स्वरूप

मां कालरात्रि का स्वरूप भयावह है और मां का रंग उनके नाम की तरह की घने अंधकार सा बिल्कुल काला है. इनके सिर के बाल बिखरे हुए हैं और मां ने गले में विद्युत के समान चमकीली माला धारण की है. मां कालरात्रि के तीन नेत्र हैं, जोकि ब्रह्मांड के समान गोल हैं. मां की सवारी गर्दभ यानी गधा है. मां के ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ में वर मुद्रा है, दाहिनी तरफ ने नीचे वाले हाथ में अभय मुद्रा है. बाईं ओर वाले हाथ में लोहे का कांटा और नीचे वाले हाथ में खड्ग है. मां कालरात्रि की पूजा से आसुरी शक्तियों का विनाश होता है और दैत्य, भूत-पिशाच, दानव सभी इनके नाम से भी दूर चले जाते हैं.

मां कालरात्रि की कथा (Maa Kaalratri Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार, रक्तबीज नामक एक दैत्य ने चारों ओर हाहाकार मचा रखा था. उसके आतंक से मानव से लेकर देवता सभी परेशान थे. रक्तबीज को ऐसा वरदान प्राप्त था कि, उसके रक्त की बूंद धरती पर गिरते ही उसी के समान एक और शक्तिशाली दैत्य तैयार हो जाएगा. इस तरह रक्तबीज की सेना तैयार होती गई और उसका आतंक भी बढ़ता गया. रक्तबीज से परेशान होकर सभी देवतागण भगवान शिव के पास पहुंचे. शिव जी जानते थे कि रक्तबीज का अंत केवल माता पार्वती ही कर सकती हैं. इसलिए उन्होंने माता पार्वती से अनुरोध किया. तब माता पार्वती ने अपनी शक्ति और तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया.

मां कालरात्रि का रूप रौद्र और विकराल था. गर्दभ की सवारी, काला रंग, खुले केश, गले में मुंडमाला, एक हाथ वर मुद्रा में, एक हाथ अभय मुद्रा में, एक हाथ में लोहे का कांटा और एक हाथ में खड्ग. मां कालरात्रि ने रक्तबीज का वध करते हुए उसके शरीर से निकलने वाले रक्त के बूंद को जमीन पर गिरने से पहले ही पी लिया और इस तरह से मां ने रक्तबीज के आतंक से मानव और देवताओं को मुक्त कराया. मां के इस रूप को कालरात्रि और कालिका भी कहा जाता है.

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