अखाड़ा महाराजा सूरजमल द्वारा प्रतिवर्ष कि तरह शस्त्र पूजन कार्यक्रम पारम्परिक रीति से मनाया गया। शस्त्र पूजन कार्यक्रम में काफी संख्या में पुरूषों और महिलाओं ने भाग लिया। सर्वे प्रथम यज्ञ हवन किया गया और शस्त्रों का मंत्रो द्वारा उच्चारण कर पूजन किया गया व सभी ने अपने अपने शस्त्रों को कलावा बांधा और हल्दी , रोली से तिलक किया। पूजन उपरांत सभी वक्ताओं ने अपने अपने विचार रखे। बाबा परमेन्द्र आर्य ने कहा जिस तरह से सुहागिन स्त्रियां अपने गहनों से लगाव रखती है व गहनों से सजी-धजी रहतीं हैं । उसी तरह से वीर पुरूषों को हथियारों से लैस रहना चाहिए व हथियारों को अपने शरीर का अंग समझना चाहिए। प्रत्येक नागरिक को अपनी व अपने परिवार की सुरक्षा करने का अधिकार है और सुरक्षा शस्त्रों के बल पर होती है । इसलिए सभी शस्त्रों के चलाने का प्रशिक्षण भी लेना चाहिए। त्रेतायुग मे विजय दशमी के दिन ही रामचंद्र जी ने उस समय के दुर्दांत राक्षस रावण का वध किया था। विजय दशमी को हम रामचन्द्र जी की विजय के रूप में भी मनातें है । रामजी ने सीता माता को सकुशल लंका की अशोक वाटिका से मुक्त कराया था । रावण उस समय का सबसे शक्तिशाली राक्षस था । कोई भी राजा उसके अत्याचारों के खिलाफ नहीं बोलता था । जब जब भी पृथ्वी पर अत्याचार बढा है। राक्षसों की संख्या बढ़ी है तब तब शस्त्रधारी योद्धाओं ने उनका नाश किया । प्राचीन काल में हमारे यहां गुरुकुलो में शस्त्र और शास्त्र दोनों की शिक्षा दी जाती थी और प्रत्येक युवक व युवती को गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करनी अनिवार्य थी ।
