नई दिल्ली. पिता सरकारी स्कूल में गणित के टीचर और बेटी बन गई वर्ल्ड चैंपियन. वो भी महज 17 साल की उम्र में ही. हम बात कर रहे हैं अदिति स्वामी की, जो देश की पहचान बन गई हैं. अदिति ने एक दिन पहले जर्मनी के बर्लिन में चल रही वर्ल्ड आर्चरी चैंपियनशिप में व्यक्तिगत गोल्ड मेडल जीता. ये चैंपियनशिप में भारत का पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक है. अदिति ने दो बार की विश्व चैंपियन तीरंदाज एंड्रिया बेकेरा को हराकर ये मुकाम हासिल किया. दो महीने पहले ही अदिति जूनियर वर्ग में विश्व चैंपियन बनीं थीं.

इससे पहले, अदिति स्वामी वर्ल्ड आर्चरी चैंपियनशिप में ही भारत को 92 साल के इतिहास में पहला स्वर्ण पदक दिलाने वाली कंपाउंड महिला टीम का भी हिस्सा रहीं थीं. 1931 में शुरू हुए टूर्नामेंट इतिहास में भारत ने पहली बार इस चैंपियनशिप का स्वर्ण पदक जीता है. अदिति के लिए यहां तक का सफर आसान नहीं रहा. सतारा की ये लड़की ने गन्ने के खेत में बनी एकेडमी से निकलकर सोना जीतने में सफल रही है.

अदिति ने गन्ने के खेत में बनी एकेडमी में की ट्रेनिंग
अदिति के तीरंदाज बनने की कहानी समर्पण, अथक परिश्रम और कभी न हार मानने वाले जज्बे से भरी है. बेटी तीरंदाज बन सके, इसलिए परिवार गांव छोड़कर सतारा शहर में बस गया. यहां पिता गोपीचंद ने गणित टीचर की नौकरी कर ली. गोपीचंद को खेलों से बेहद लगाव था और वह चाहते थे कि उनकी बेटी कम से कम एक स्पोर्ट्स में जरूर हाथ आजमाएं.

दुबली-पतली अदिति को पहली नजर में आर्चरी भा गई
पिता गोपीचंद ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, “यही बड़ी वजह थी कि मैंने गांव छोड़ा. मैंने सोचा कि शहर में अदिति को ज्यादा मौके मिलेंगे. 12 साल की उम्र में मैं उसे शहर के शाहू स्टेडियम में लेकर गया था. स्टेडियम में बच्चे फुटबॉल खेल रहे थे. कुछ दौड़ रहे थे. लेकिन स्टेडियम के एक कोने में कुछ बच्चे अपने तीन-कमान सेट कर रहे थे. बस, इसी बात ने अदिति का ध्यान खींच लिया और यहीं से उनके आर्चर बनने की शुरुआत की.”

पिता ने आगे बताया, अदिति दुबली पतली थी और उसे वो खेल पसंद नहीं आए, जिसमें शारीरिक दमखम का ज्यादा जोर था. मुझे लगता है कि आर्चरी में अदिति की रुचि इसलिए हुई क्योंकि इस खेल में तीरंदाज को बेहद सटीक रहना पड़ता है.

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पिता ने 10 लाख का कर्जा लिया
एक बार अदिति का तीरंदाजी में मन क्या रमा वो गन्ने के खेत में बनाई गई एकेडमी में कोच प्रवीण सावंत के साथ ट्रेनिंग में काफी वक्त बिताने लगीं. वो रोज तीन-चार घंटे ट्रेनिंग करती थीं. पिता गोपीचंद भी दीपिका कुमारी और अभिषेक वर्मा जैसे बड़े तीरंदाजों के वीडियो दिखाकर बेटी का हौसला बढ़ाते थे. हालांकि, पैसों की तंगी थी. क्योंकि तीरंदाजी महंगा खेल है. एक प्रोफेशनल आर्चरी इक्विपमेंट ही ढाई से 3 लाख रुपये का आता है. 50 हजार के तीर ही आते हैं. ऐसे में पिता को लोन लेना पड़ा. धीरे-धीरे ये लोन बढ़कर 10 लाख रुपये का हो गया. अदिति की मां सरकारी कर्मचारी हैं, तो कुछ मदद वो करती हैं. कोरोना के दौरान थोड़ी अड़चन आई लेकिन अदिति अपने लक्ष्य पर अडिग रही और आज विश्व चैंपियन बन अपनी काबिलियत साबित कर दी.

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