अंजलि सिंह राजपूत

लखनऊ. अवध के आखिरी नवाब सआदत अली खां का मकबरा उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के हजरतगंज में बेगम हजरत महल पार्क के पास बना हुआ है. इस मकबरे में सआदत अली खां अपनी बेगम और बेटियों के साथ दफन हैं. पांच तल के इस मकबरे में हर तल पर जाने के लिए चार रास्ते हैं. तहखाने में जाने वाले चारों रास्तों को बंद कर दिया गया है. सिर्फ एक रास्ते को ही खोला गया है, लेकिन उस तहखाने में जाने से लोग घबराते हैं क्योंकि वहां पर जाने से एक अजीब घटना होती है.

जब न्यूज़ 18 लोकल इस मकबरे पर पहुंची तो तहखाने के अंदर प्रवेश करने पर जहां अवध के आखिरी नवाब दफन हैं वहां जाते ही कैमरा पूरी तरह से धुंधला हो गया. जबकि उसकी दीवारों पर पिक्चर एकदम साफ नजर आ रही थी, लेकिन जब-जब कैमरे को कब्र की ओर घुमाया जा रहा था तब-तब कैमरा पूरी तरह से धुंधला हो जा रहा था. यह घटना सिर्फ हमारे साथ ही नहीं, बल्कि वहां के जो गाइड हैं उनसे पूछताछ करने पर पता चला कि ज्यादातर पर्यटकों ने यही शिकायत की है. इसके पीछे का राज आज तक कोई नहीं जान पाया है.

इतिहासकार रवि भट्ट के मुताबिक अवध के आखिरी नवाब सआदत अली खां की मौत के बाद उनके बेटे गाजीउद्दीन हैदर ने अपने पिता, मां और बहनों की कब्र के लिए इस आलीशान किले को बनवाया था. यह मकबरा वर्ष 1814 में बनना शुरू हुआ था और 1827 में बनकर तैयार हो गया था. इसे लखौरी ईंटों से बनाया गया है. इसमें उस समय पहली बार मार्बल का इस्तेमाल किया गया था. इसके अंदर जो कलाकृति की गई है वो बड़े इमामबाड़े से भी ज्यादा खूबसूरत है. इसकी छत की ऊंचाई 50 फीट से भी ऊंची है. उन्होंने बताया कि अंग्रेजों ने जब अवध पर अपना कब्जा कर लिया था तो वर्ष 1858 में यहां क्रिसमस बनाया गया था. क्योंकि उन्होंने कुछ वक्त के लिए इस मकबरे का इस्तेमाल चर्च के तौर पर भी किया था.

रहस्यमयी है पूरा मकबरा

इस मकबरे के रोशनदान को इस तरह से बनाया गया है कि सूर्योदय होने पर उसकी पहली किरण कब्र पर पड़ती है, और जब सूरज अस्त होता है तो आखिरी किरण भी कब्र पर पड़ती है. यही नहीं, इसे घूमना निशुल्क है.

बता दें कि, इस मकबरे के ठीक बगल में एक और मकबरा है जोकि  खुर्शीदजादी का मकबरा है. खुर्शीदजादी नवाब सआदत अली खां की बेगम थी जिनकी कब्र इस दूसरे मकबरे में है.

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