Disha Bhoomi

Modinagar | 2021 दुनिया भर के देशों से आग्रह किया गया कि में संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज पर पार्टियों के 26 वें सम्मेलन (CoP26) के दौरान 2050 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए आगे सभी देश आएं और प्रतिबद्धता बनाएं। इसी में भारत ने 2070 तक पूर्णता शून्य कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने की प्रतिबद्धता की हैं और इसके अनुरूप भारत 2030 तक अपनी ऊर्जा जरूरतों का 50% अक्षय स्रोतों के माध्यम से आपूर्ति करेगा। नेट जीरो प्राप्त करने का एकमात्र तरीका कोयले के उपयोग को धीरे-धीरे समाप्त करना, पेट्रोलियम उत्पादों के उपयोग को कम करना और अधिक पेड़ लगाकर व् अक्षय ऊर्जा स्रोतों में समानांतर वृद्धि निवेश करना है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, एमएसएमई क्षेत्र, जो भारत के जीडीपी में लगभग 30 प्रतिशत का योगदान देता है, वह लगभग 110 मिलियन टन CO2 समकक्ष उत्पन्न करता है। इसलिए एमएसएमई की सक्रिय भागीदारी से ही नेट-जीरो की दौड़ जीती जा सकती है।
भारतीय MSMEs को नेट-जीरो के रास्ते में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता सकता है। काफी छोटे उद्योगों के पास सीमित संसाधन होते हैं, बहुत जगह उनके पास अपनी सुविधाओं का स्वामित्व नहीं है, इसलिए वे ऊर्जा-कुशल प्रणाली में अपग्रेड नहीं कर पाएंगे और मालिक ये निवेश का खर्च उठाना नहीं चाहेंगे। जहाँ बड़े कॉर्पोरेट घरानों के पास इन क्षेत्रों में निवेश करने के लिए आर्थिक ताकत है, छोटे उद्योगों को कई वित्तीय बाधाओं का सामना करना पड़ेगा। सीमित जागरूकता और तकनीकी साधन, असमर्थित नियामक व्यवस्था और जटिल पर्यावरणीय मानदंड छोटे उद्योगों के लिए और चुनौतियां पैदा कर सकते हैं। छोटे औद्योगिक इकाइयां अक्सर अपनी प्रक्रियाओं के पर्यावरणीय परिणामों से अनजान होती हैं , इसके लिए उन्हें शिक्षा और प्रशिक्षण की जरुरत होगी।
बड़े उद्योगों ने नेट जीरो प्राप्त करने की अपनी दौड़ में उत्सर्जन पर आधारभूत डेटा बनाकर इन सभी पहलुओं पर काम करेंगे जैसे की किस तरह की पैकिंग आइटम का उपयोग किया जाये , उत्पाद के लिए कच्चे माल की सोर्सिंग का तरीका, उसके परिवहन का तरीका / इलेक्ट्रिक व्हीकल , उत्पाद बनाने में किस प्रकार की ऊर्जा की खपत, अंतिम मील डिलीवरी आदि। इस सभी मुद्दों पर सभी कंपनियां अपनी रणनीति को नया स्वरूप देंगी।
धीरे-धीरे, कंपनियां इन मुद्दों को हल करने के लिए आपूर्तिकर्ताओं यानि छोटे उद्योगों के साथ सामंजस्य बैठकर काम करना शुरू करना चाहेंगे । ये सभी छोटे बदलाव नहीं होंगे और आपूर्ति करने वाले छोटे उद्योगों पर आर्थिक बोझ डालेंगे।
इसके लिए आवशयक होगा की एक सुविधाजनक नियामक ढांचा बनाया जाये जिससे छोटे उद्योगों को नेट जीरो लक्ष्य से जुडी शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान किया जा सके और आर्थिक मदद मिल सके। इसके लिए बड़े कारपोरेशन भी अपनी आपूर्ति श्रृंखला प्रतिभागियों को वित्तीय सहायता प्रदान कर, उनका समर्थन कर एक एहम भूमिका निभा सकते हैं । दूसरा, सरकार को एमएसएमई को टैक्स लाभ या सब्सिडी प्रदान करके उनका समर्थन करने की जरूरत है ताकि वे नेट जीरो पर जा सकें। अंत में, MSMEs के बीच विजेता वे होंगे जो इस स्पष्ट लक्ष्य पर सक्रिय रूप से ध्यान देकर समय रहते बदलाव कर पाएंगे।

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