महाकुंभ के समापन समारोह का संचालन कृति जी एवं हृदयांश द्धारा किया गया। कृति जी ने अपनी वाणी की कुशलता दिखाते हुए बहुत ही सुंदर प्रकार से संचालन को व्यवस्थित किया। सर्वप्रथम लोगों के जुड़ने के समय नारायण व कनिका द्धारा बहुत ही सुंदर और मधुर गीत कराये गए। तत्पश्चात मंगलाचरण के माध्यम से जो हमारी संस्कृति का एक अभिन्न अंग द्धारा कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। यह वैदिक मंगलाचरण जीवेश जी के द्धारा संपन्न हुआ। उसके बाद जोनीशाहमहोदय ने सरस्वती वंदना करके कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। तत्पश्चात समृद्धि जी ने ध्येय मंत्र प्रस्तुत किया। अनिल जी ने अपने अनुभव में संस्कृत की यात्रा का वर्णन करते हुए वर्ग का अनुभव बताया। इसके उपरांत चतुर्थ कक्षा में पढ़ने वाली नियति ने अपना परिचय संस्कृत में दिया। आशा जी ने भी वर्ग के अपने अनुभव को सबके साथ साझा किया। उसके बाद नरेन्द्रभागीरथी महोदय (गाजियाबाद व नोएडाविभाग संगठनमंत्री, संस्कृतभारती) ने प्रास्ताविक के माध्यम से बताया कि इस महाकुंभ का उद्घाटन 20/06/2021 को अखिल भारतीय महामंत्री श्रीशदेवपुजारी महोदय की उपस्थिति में हुआ था। इस संस्कृतमहाकुंभ में भारत के विभिन्न राज्यों से 1200 से अधिक विद्यार्थियों का आगमन हुआ। भारत से ही नहीं अपितु विदेशों से भी यथा अमेरिका, इंग्लैंड, मोरिशस, दुबई, नेपाल आदि देशों से भी संस्कृत प्रेमियों ने प्रतिभाग किया। 21 जून से प्रातः 8 बजे से सायं 09 बजे तक निरन्तर 13 वर्ग चलायें गयें। जिसमें कक्षा 4 से लेकर शोधछात्र-छात्राएँ व शिक्षक आदि ने बढचढकर प्रतिभाग किया। विशेष बात यह रही कि इस इन वर्गों में संस्कृत विषय से अलग बी.एस.सी, बी. कॉम, एम.एस.सी, एमकॉम, एल.एल.बी. , एल.एल.एम, बी.एम.एस, एम.बी.बी.एस, बी.टेक, चिकित्सक, अधिवक्ता , प्रबन्धक, अभियांत्रिक, सेवानिवृत्त इत्यादि विभागों के लोगो ने भी संस्कृत सम्भाषण को बड़े आनन्द के साथ सीखा। इन वर्गों में 18 शिक्षकों द्वारा शिक्षण कार्य किया गया। इसके उपरांत आर्या जी ने अपनी मधुर वाणी से संस्कृत कविता सुनायी। तत्पश्चात श्री अमित महोदय (प्रांत शिक्षण प्रमुख)जी ने अतिथि परिचय कराया। इस समारोह में मुख्य अतिथि के रुप में माननीय श्री सत्यनारायण भट्ट महोदय (अखिल भारतीय मंत्री, संस्कृतभारती) जी विराजमान रहे। महोदय ने अपने बहुमूल्य वचनों से हमारा मार्गदर्शन किया। उन्होंने बताया कि अपने सम्भाषण में परिष्कार व वृद्धि करने के लिए संस्कृतभारती के पत्राचार पाठ्यक्रम में प्रवेश अवश्य लें।
संस्कृतसम्भाषण हमारा आत्माभूत कार्य है । जैसे – मछली का संपूर्ण जीवन जल में ही होता है उसका तैरना , उसका भोजन अन्य सभी कार्य जल में रहते हुए ही होते हैं । ऐसे ही भारत के विचार , भारत के मूल्य , संस्कार और संस्कृति भी संस्कृत वांग्मय से ही प्राप्त किए जा सकते हैं । उत्तम विचारों का चिंतन ,सुभाषित, स्तोत्र व काव्य यह सभी संस्कृत वांग्मय में ही उपस्थित हैं । कोरोना काल से पीड़ित इस विश्व में संस्कृतभारती के सभी कार्यकर्ता सर्वत्र पर ऑनलाइन के माध्यम से संस्कृत शिविर चला रहे हैं । जिस प्रकार रामायण में राम के सेवक के द्वारा सभी कार्य किए गए , भक्ति से ,सेवा से ,निष्ठा से ,श्रद्धा से सभी प्रकार से हनुमान जी ने श्री राम की सेवा की इतना सब कुछ करते हुए भी हनुमान जी सोचते थे कि मैं राम का एक लघु सेवक हूँ । ऐसा चिंतन उच्च व्यक्तित्व वाले लोग ही रख सकते हैं ,चाहे वह श्रीराम हो ,चाहे वह हनुमान । हमारे पूर्वजों ने भी संस्कृत का प्रचार किया है और हम भी उनके पद चिन्हों पर चलते हुए संस्कृत का प्रचार करेंगे व संस्कृत को बोलना अधिक से अधिक सीखेंगे ।