Why Interval In Indian Films: अकसर, भारतीय फिल्मों की तुलना अंग्रेजी फिल्मों से की जाती है. फिल्मों के म्यूजिक, निर्देशक,अभिनेता, सिनेमैटोग्राफर, कॉस्टयूम और बाकी चीजों की बातें होती हैं. लेकिन, एक चीज पर ज्यादातर लोगों का ध्यान नहीं जाता है. यह है Interval या Intermission. हाॅलिवुड की फिल्मों में Interval जैसी कोई चीज नहीं होती है. भारत की जनता को Interval की ऐसी आदत हो गई है कि यहां हॉलीवुड फिल्मों की स्क्रीनिंग के समय भी अलग से Interval को जोड़ा जाता है. लेकिन भारत में Interval का चलन क्यों हैं? आइये जानते है इसके पीछे की तकनीकी, आर्थिक और सामाजिक वजह.

हॉलीवुड में क्यों नहीं होता Interval?

सबसे पहले बॉलीवुड फिल्मों बात करते हैं. इनमें Interval न होने की मुख्य वजह इनको लिखे जाने का तरीका है. यह फिल्में ‘थ्री-एक्ट स्ट्रक्चर’ को ध्यान में रखकर लिखी जाती हैं. पहले एक्ट में किरदारों को स्थापित किया जाता है. दूसरे में संघर्ष या टकराव के बारे में बताया जाता है. आखिरी और तीसरे एक्ट में टकराव का समाधान करते हैं. इस वजह से बीच में ब्रेक लेने की कोई मतलब नहीं बनता है. इसके अलावा उनकी ज्यादातर फिल्में दो घंटे से ज्यादा लंबी नहीं होती है. लगभग 100 मिनट लंबी फिल्मों में दर्शकों को ब्रेक की जरूरत भी नहीं पड़ती. वहां, फिल्म शुरू होने से पहले ही खाने-पीने की चीजें लेने का भी चलन है.

भारत में इसलिए जरूरी होता है Interval

अब बात करते है भारतीय फिल्मों की. कई लोगों मानते है कि क्योंकि भारत में लंबी अवधि की फिल्में बनती है, इसलिए दर्शकों को ध्यान में रखकर Interval दिया जाता है. यह तर्क कुछ हद तक ठीक भी है. लेकिन इसके पीछे एक टेक्निकल वजह है. दरअसल, पहले की फिल्मों में रील का उपयोग होता था. इनकी मदद से फिल्मों की स्क्रीनिंग की जाती थी. ऐसे में प्रोजेक्शनिस्ट को रील बदलने के लिए कुछ समय की आवश्यकता होती थी. इस काम के लिए मूवी के बीच में ब्रेक लिया जाता था.

भारत की फिल्मों में Interval का होना एक तरह से जरूरी भी है. यह तो सब जानते है कि Interval से सबसे ज्यादा फायदा थिएटर वालों का होता है. इस समय ही सबसे ज्यादा लोग थिएटर से खाने-पीने के चीजें खरीदते हैं. लेकिन, यह कुछ लोग ही जानते है कि Interval में होने वाली कमाई, थिएटर की कुल आय का बड़ा हिस्सा होता है. क्योंकि, टिकट का ज्यादातर पैसा डिस्ट्रीब्यूटर और सरकार के पास जाता है. थिएटर को ठीक तरह से चलाने के लिए Interval में होने वाली बिक्री जरूरी होती है. बात सिर्फ थिएटर की कमाई तक नहीं है. भारतीय फिल्मों को लिखने का तरीका भी काफी अलग है. यहां, मूल रूप से ‘थ्री-एक्ट स्ट्रक्चर’ में फिल्म की कहानी नहीं लिखी जाती हैं. पहले भाग में किरदारों के साथ-साथ टकराव को भी स्थापित​​ किया जाता है. Interval एक तरह से Cliffhanger के रूप में काम करता है. कहानी की गति को बदलने में भी Interval की मदद ली जाती है.​​

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