गांव रोरी मे बाबा मेहन्द्र सिंह टिकैत की 11वी पुण्य तिथि पर यज्ञ हवन किया। उनके चित्र पर माल्यार्पण व पुष्प अर्पित करें।
बाबा परमेन्द्र आर्य ने यज्ञ उपरांत सम्बोधन करते हुए कहा कि 15 मई 2011 को किसान नेता बाबा महेन्द्र सिंह टिकैत जब इस दुनिया से चले गए तो सबने कहा कि अब किसान आंदोलन की दिशा क्या होगी? किसानों की लड़ाई कौन लडेगा ? उनके दुख-दर्द को कौन समझेगा? किसान इसी सवाल का जवाब तलाश रहा था। बाबा टिकैत का जन्म 06 अक्टूबर1935 में मुजफ्फरनगर के सिसौली गांव में हुआ। चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत ने 15 अक्तूबर 1986 में भारतीय किसान यूनियन के नाम से अराजनैतिक संगठन बनाया। 27 जनवरी 1987 को करमूखेड़ा बिजलीघर से आंदोलन का बिगुल फूंका तो 1987-88 में मेरठ के 24 दिनी ऐतिहासिक कमिश्नरी घेराव से वह बड़े किसान नेता के तौर पर उभरे। इसके बाद तो टिकैत और सत्ता की मानो जंग ही छिड़ गई। बाबा टिकैत के दिल्ली-लखनऊ कूच का ऐलान करते ही सरकारों हिलने लगतीं। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, वीपी सिंह, इन्द्र कुमार गुजराल, चंद्रशेखर से टिकैत की सीधी बातचीत होती थी मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह, मुलायम सिंह यादव भी सिसौली में हाजिरी लगाने पहुंचते थे। मुख्यमंत्री रहते रामप्रकाश गुप्त, राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह सीधे बाबा टिकैत के संपर्क में रहते थे। यह उनकी ईमानदारी और सादगी की वजह थी।
बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के साथ आंदोलन में सक्रिय रहे चौधरी मनोज कुमार चहाल ने कहा कि महेंद्र सिंह टिकैत एक ऐसा नेता थे जिसने जब आंदोलनों के लिए आवाज लगाई तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश का हर गांव उसके पीछे हो लिया। यूपी के सीएम से लेकर पीएम तक जिसकी एक आवाज पर एक्शन में आ जाता थे। बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के बाद किसान राजनीति में पैदा हुए शून्य को 10 साल बाद उनके पुत्र राकेश टिकैत ने भर दिया है। राकेश टिकैत के एक आह्वान पर सभी किसानों ने दिल्ली के लिए कूंच कर उनके साथ पूरी ताकत से खड़े हैं। इस अवसर पर मनोज कलकल , पंडित भुलेराम , पंडित उमेद कुमार, चौधरी गंगाराम श्यौराण, अमरजीत, आर्यन, रामकुमार आदि उपस्थित रहे।

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