Home AROND US आजादी के बाद भारत में पहली बार किसी महिला को होगी फांसी

आजादी के बाद भारत में पहली बार किसी महिला को होगी फांसी

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देश की आजादी के बाद दूसरी बार मथुरा जेल में किसी महिला को फांसी देने की तैयारियां चल रही हैं। हालांकि अभी फांसी की तारीख तय नहीं हुई है। इससे पहले 22 वर्ष पूर्व भी हत्या के जुर्म में बुंदेलखंड की महिला रामश्री को फांसी लगाने की तैयारी मथुरा जेल में की गयी थी, लेकिन सामाजिक संगठनों की आवाज पर राष्ट्रपति ने उसकी फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था। अब मथुरा जेल में दूसरी बार किसी महिला को फांसी देने की की तैयारियां चल रहीं हैं। मेरठ का पवन जल्लाद फांसी घर का मुआयना कर चुका है।

आजाद भारत के इतिहास में जिस महिला को पहली बार फांसी होगी उसका नाम शबनम है और वह अमरोहा की रहने वाली है। शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर 14-15 अप्रैल 2008 की रात को अपने ही घर में खूनी खेल खेला था। उसने अपने माता-पिता, दो भाई, एक भाभी, मौसी की लड़की और मासूम भतीजे को कुल्हाड़ी से काटकर बेरहमी से मार दिया था। इस रूह कंपा देने वाले जुर्म के लिए कोर्ट ने शबनम को फांसी की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी फांसी की सजा बरकरार रखी। शबनम की दया याचिका राष्ट्रपति के पास पहुंची, लेकिन उन्होंने भी इस याचिका को ठुकरा दिया।

शबनम की उम्र करीब 38 वर्ष है। उसके एक 12 वर्ष का बेटा भी है। जिसका जन्म उसने जेल में दिया था। हत्या के आरोप में गिरफ्तारी के वक्त शबनम गर्भवती थी। सात साल उसका बेटा जेल में ही पला। अब वह एक व्यक्ति की देखरेख में है। रामपुर की जेल में बंद शबनम को फांसी के लिए मथुरा लाया जाना है। हालांकि अभी उसकी फांसी की तारीख तय नहीं हुई है। उसके लिए जेल प्रशासन फांसी घर को तैयार करने में लगा हुआ है।

दरअसल उत्तरप्रदेश में सिर्फ मथुरा की जिला जेल में ही महिलाओं को फांसी दी जा सकती है। यह व्यवस्था ब्रिटिशकाल से चल रही है। ब्रिटिश काल मे 150 साल पहले मथुरा जेल में महिलाओं को फांसी देने के लिए फांसीघर बना था। यह फांसीघर 1870 में बनाया गया था। हालांकि आजादी के बाद से अब तक भारत में किसी भी महिला को फांसी की सजा नहीं दी गई। यही वजह है कि इस बार यहां अमरोहा की शबनम को परिवार के सात सदस्यों की नृशंस हत्या के जुर्म में फांसी लगाने के लिए भेजा जाना है। वरिष्ठ जेल अधीक्षक शैलेंद्र कुमार मैत्रेय ने बताया कि अभी फांसी की तारीख तय नहीं है, लेकिन हमने तयारी शुरू कर दी है। डेथ वारंट जारी होते ही शबनम को फांसी दे दी जाएगी।

जेल अधीक्षक के मुताबिक मेरठ का पवन जल्लाद दो बार फांसीघर का निरिक्षण कर चुका है। उसे तख्ता-लीवर में कमी दिखी, जिसे ठीक करवाया जा रहा है. बिहार के बक्सर से फांसी के लिए रस्सी मंगवाई जा रही है। अगर अंतिम समय में कोई अड़चन नहीं आई तो शबनम पहली महिला होंगी जिसे आजादी के बाद फांसी की सजा होगी।

शबनम भले ही पहली महिला हों जिसे देश में फांसी की सजा दी जाएगी, लेकिन उनसे पहले भी कई महिलाओं को फांसी की सजा सुनाई गई थी, जिसे राष्ट्रपति ने उम्रकैद में तब्दील कर दिया था। इसे जानने के लिए हमें इतिहास में जाना होगा, उस समय हत्या के जुर्म में कैद बुंदेलखंड की रामश्री को फांसी के लिए मथुरा जेल लाया गया था। उस समय भी फांसी घर का सुधार हुआ था। इसके लिए मेरठ के कल्लू जल्लाद को जेल बुलाया गया था। फर्क इतना है कि तब रामश्री का बेटा जेल में ही उसकी गोद में था और शबनम का बेटा जेल से बाहर एक व्यक्ति की देखरेख में है। शबनम के साथ उसके प्रेमी को भी फांसी सजा सुनाई गई है, जबकि रामश्री के साथ उसके तीन भाईयों को फांसी की सजा सुनाई गई थी।

रामश्री को फांसी दिए जाने की खबर ने मथुरा ही नहीं प्रदेशभर के महिला संगठनों को विचलित दिया था। मामला राष्ट्रीय महिला आयोग तक पहुंचा था। तब राष्ट्रपति यहां दया याचिका दायर की गई थी। इस पर रामश्री की फांसी की सजा को उम्र कैद में तब्दील कर दिया था।

भारत में इस समय इक्का दुक्का ही जल्लाद हैं जो न्याय पालिका से सजा पाए लोगों को फांसी देते हैं, उनमें से पवन जल्लाद एक है। 57 साल का पवन जल्लाद मेरठ का रहने वाला है। वह कई पीढ़ियों से वो इसी शहर में रह रहा है। वैसे आमतौर पर वो पार्ट टाइम तौर पर कपड़ा बेचने का काम करता है, लेकिन अधिकृत जल्लाद के काम से जुड़े हुए उसे चार दशक से ज्यादा समय जो चुका है। पवन के दादा कालू जल्लाद भी इसी काम से जुड़े थे। कालू जल्लाद ने अपने पिता लक्ष्मण सिंह के निधन के बाद 1989 में ये काम संभाला था।

पवन के दादा कालू ने अपने करियर में 60 से ज्यादा लोगों को फांसी दी। इसमें इंदिरा गांधी के हत्यारों सतवंत सिंह और केहर सिंह को दी गई फांसी शामिल हैं। उन्हें फांसी देने के लिए कालू को विशेष तौर पर मेरठ से बुलाया गया था। इससे पहले रंगा और बिल्ला को भी फांसी देने का काम उसी ने किया था।

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