Disha Bhoomi
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Modinagar दान विलेख (गिफ्ट डीड) के मामलों में नया शासनादेश जारी होने के बाद से स्थानीय उपनिबंधक कार्यालय में 18 जून से लेकर अब तक 230 लोगों ने संपत्ति की अपनों के नाम रजिस्ट्री की है। अब से पहले लोगों को दान विलेख प्रकरण में पूरा स्टांप शुल्क देना पड़ता था। अब यह काम केवल पांच हजार व एक हजार रुपये प्रोसेंसिग का शुल्क देने पर ही पूरा हो रहा है।
उपनिबंधक राजीव कुमार ने बताया कि ज्यादा स्टांप शुल्क लगने के कारण कई बार लोग संपत्ति की रजिस्ट्री कराने से कतराते थे, लेकिन नए शासनादेश से पहले वसीयत के मामले जहां 12 से 15 रोजाना होते थे। वहीं, अब इनका आंकड़ा मात्र दो से तीन रह गया है। नए नियम से आने वाले समय में परिवारिक संपत्ति विवादों में भी कमी देखने को मिलेगी और रजिस्ट्री का यह आंकड़ा आने वाले समय में और बढने वाला है। मात-पिता, पुत्र-पुत्री, दामाद, पुत्र व पुत्री के बच्चे आदि ब्लड रिलेशन में अचल संपत्ति की रजिस्ट्री करने पर सर्किल रेट के हिसाब से पूरा शुल्क देना पड़ता था। इसी के चलते लोग वसीयत कराने को ज्यादा सही मानते थे। हालांकि, इन मामलों में बाद में जाकर विवाद की स्थिति उत्पन्न होती थी। दाखिल खारिज कराने के दौरान आपत्तियां लगती थीं और सालों साल दोनों पक्ष कोर्ट के चक्कर लगाते रहते थे। कई बार संपत्ति की दशकों बाद भी विरासत ही तय नहीं हो पाती थी, लेकिन नए शासनादेश से आने वाले समय में इनमें कमी आएगी।
माना जा रहा था, कि ब्लड रिलेशन में संपत्ति की रजिस्ट्री पर शुल्क कम होने से सरकार को घाटा होगा। लेकिन इसका सकारात्मक परिणाम सामने दिख रहा है। जो लोग अब पांच हजार रुपये का स्टांप शुल्क व एक हजार रुपये का प्रोसेसिग शुल्क देकर संपत्ति की रजिस्ट्री कर रहे हैं। इनमें अधिकांश वह लोग हैं जो नया सरकारी नियम आने से पहले वसीयत का मन बनाकर बैठे थे। ऐसे में सरकार को इसका नुकसान कम और फायदा ज्यादा हो रहा है। यही वजह है कि वसीयत के आंकड़े में लगातार कमी आ रही है।
वसीयत का लाभ
अपनों के नाम यदि कोई व्यक्ति वसीयत करता है तो वह जब तक जिंदा है खुद उसका मालिक रहता है। उसके मरणोपरांत कोई भी व्यक्ति उस पर वसीयत के आधार पर अपनी उस संपत्ति पर दावेदारी करता है। लेकिन दान विलेख में नए नियम के तहत रजिस्ट्री करने से दावेदार को उसी दिन से उसका मालिकाना हक मिल जाता है।

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